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६४८. पत्र: मोतीबहन चौकसीको

साबरमती आश्रम रविवार
[६ जून १९२६][१]

चि॰ मोती,

तुम्हारा पत्र मिला। इस बारकी लिखावट अच्छी कही जा सकती है। यदि हमेशा कितना भी कम किन्तु सुन्दर अक्षर लिखनेका अभ्यास करती रहोगी तो लिखावट अवश्य सुधरेगी। तुमने जो प्रश्न पूछा है वैसे ही प्रश्नका उत्तर 'नवजीवन' के इस अंकमें दिया गया है। खटमलोंको बढ़ने देना और फिर उन्हें मारना——क्या इसके बीचकी कोई स्थिति नहीं है? हम उन्हें बढ़नेकी सुविधा देनेके लिए बँधे हुए नहीं हैं और उन्हें मारनेका हमें अधिकार नहीं। इसलिए उसे उठाकर दूर रख देते हैं। तुम्हारा पत्र ही मणिबहनको सौंप दूँगा। लक्ष्मीदास ज्यों ही आया त्यों ही मैंने उसे मसूरी भेज दिया। बेलाबहन कल ही मणिको लेनेके लिए,——रामदास जा रहा था—— सो उसके साथ बम्बई गई हैं। वापस आते समय तुम्हारे साथ एक दिन रहकर यहाँ आयेगी। मणिबहन कहती है कि भेजी हुई पुस्तक उसे नहीं मिली है।

बापूके आशीर्वाद

सुकन्या नाजुकलाल चौकसी
राष्ट्रीय केलवणी मण्डल, भड़ौच

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १२१२८—ए) की फोटो-नकलसे।

६४९. तार: के॰ टी॰ पॉलको

७ जून, १९२६

के॰ टी॰ पॉल


थोट्टम


सेलम

पत्रके लिए धन्यवाद। गहराईसे और प्रार्थनापूर्वक विचार करनेके बाद मेरा अन्तिम निर्णय फिनलैंड न जानेका है।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११३५८) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरसे।