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६३८. पत्र: प्राणजीवनदास ज॰ मेहताको

साबरमती आश्रम
५ जून, १९२६

भाईश्री ५ प्राणजीवन,

इसके साथ चि॰ जेकीका[१] पत्र है। इसमें जो-कुछ लिखा है वह सब तो मैं नहीं समझ सकता। उससे जो भी अपराध हुए हों तुम्हें उसे पत्र तो लिखना ही चाहिए, ऐसी मेरी मान्यता है।

मेरा फिनलैंड जाना रद ही हो गया समझो। अपनी तबीयतका समाचार देना। मेरी तबीयत अच्छी रहती है। आज रतिलालका[२] पत्र आया है; उसे भी इसके साथ ही भेजता हूँ। मुझे आशंका है कि रतिलाल यहाँ नहीं आयेगा। यहाँ उसे कुछ-न-कुछ अंकुश जान पड़ेगा और चूँकि वह यहाँ नहीं आयेगा; इसलिए ऐसा लगता है कि वह मणिलालके पास भी नहीं जायेगा। तथापि मैं उसे लिखता तो रहूँगा ही। गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५९७) की फोटो-नकलसे।

६३९. पत्र : जयकुँवर मणिलाल डॉक्टरको

आश्रम
५ जून, १९२६

चि॰ जेकी,

तुम्हारा पत्र मिला। यह पत्र मैं डाक्टरको<ref>जैकीके पिता; डा॰ प्राणजीवनदास मेहता। भेज रहा हूँ, जो उत्तर आयेगा तुम्हें लिखूँगा। तुम्हारे पास जो पैसा भेजनेके लिए लिखा है उसका स्कूलके कामसे कोई सम्बन्ध नहीं है। वह पत्र यदि मैंने फाड़ न दिया होता तो तुम्हें भेज देता। उसे ढूढूँगा और यदि वह बच गया होगा तो तुम्हें भेज दूँगा। डाक्टरकी तबीयतके बारेमें समाचार यह है कि उनकी तबीयत अभी अच्छी नहीं कही जा सकती। बोलनेमें कुछ हकलाते हैं और मुश्किलसे हस्ताक्षर कर पाते हैं। लेकिन चेहरा देखनेसे ऐसा मालूम नहीं होता कि उन्हें कोई रोग है। भाई मणिलाल कौंसिलमें जानेका प्रयास करें, इसे मैं तो निरर्थक ही मानता हूँ। हिन्दुस्तानसे बाहर जाने की भी सलाह मैं नहीं दे सकता। मैं तो यही ठीक समझता हूँ कि वे यहीं रहें और चाहे कितना

  1. प्राणजीवनदास मेहताकी पुत्री।
  2. प्राणजीवनदास मेहताका पुत्र।