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पत्र: एस॰ शंकरको

लगता है देवदासको मॉडसे ईर्ष्या होने लगी थी; इसीलिए तो उसने भी अपेंडिसाइटिसकी बला मोल ले ली। अभी कुछ दिन पहले उसका ऑपरेशन हुआ और कल अस्पतालसे अच्छा होकर बाहर आ गया है। कुमारी स्लेड, जिन्हें मीराबाई भी कहते हैं, इस गर्म मौसमको बहुत ही अच्छी तरह झेल रही हैं। वे बहुत अच्छा कातने लगी हैं। अपनी जरूरतकी रुई वे खुद धुन लेती हैं। एन्ड्रयूज पिछले पाँच-छ: दिनोंसे यहाँ हमारे साथ ही हैं। कल शायद वे कोटगढ़के लिए रवाना होंगे। वहाँ उन्हें स्टोक्ससे मिलना है। रामदास खादीकी फेरी लगाता है और ऐसा लगता है, उसे यह काम रुचता भी है।

तुम्हारा 'भगवद्गीता' के अनुवादोंका संग्रह मिला। बड़ी प्रसन्नता हुई। इस संग्रहके बारेमें तुम्हारी हिदायतोंको मैंने ध्यानमें रख लिया है। मैं उस प्रतिको ताले-चाबीमें रखता हूँ। उसकी नकल तैयार होते ही मैं तुम्हें तुम्हारी प्रतिलिपि रजिस्ट्रीसे वापस भेज दूँगा।

लगभग निश्चित-सा दीखता है कि मैं फिनलैंड नहीं जा रहा हूँ। लेकिन यदि गया और लन्दन भी आया तो स्वाभाविक ही मैं तुम्हारे यहीं ठहरूँगा। हाँ, यदि तुम सार्वजनिक या अन्य कारणोंसे चाहोगे कि मैं कहीं और ठहरूँ, तो बात दूसरी है।

हृदयसे तुम्हारा,

श्री हेनरी एस॰ एल॰ पोलक


४२, ४७ व ४८ डेन्स इन हाउस
२६५, स्ट्रैन्ड


लन्दन, डब्ल्यू॰ सी॰ २

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५९३) की फोटो-नकलसे।

६३३. पत्र: एस॰ शंकरको

साबरमती आश्रम
४ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। जहाँतक स्वास्थ्यके लिए हानिकर न हो उस सीमातक अपनी आवश्यकताओंको घटाकर आप अपना जीवन सादा बना सकते हैं। आप अपनी पोशाकमें सादगी ला सकते हैं। आप जल्दी सोने, सुबह चार बजे उठने और विस्तरमें जानेके ठीक पहले और बिस्तर छोड़नेके ठीक बाद प्रार्थना करनेकी आदत डाल सकते हैं। आप प्रतिदिन नियमित रूपसे कमसे-कम आधा घंटा सूत कात सकते हैं। हिन्दी और संस्कृतका अध्ययन कीजिए और स्वस्थ साहित्य पढ़िए। सूत कातनेमें