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६२७. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

सबरमती आश्रम
३ जून, १९२६

प्रिय सतीशबाबू,

खेड़ा, कच्छके निवासी श्री मुहम्मद हसन चमनका इस आशयका पत्र आया है कि उन्होंने कुछ समय पहले आपसे निवेदन किया था कि उन्हें 'प्रतिष्ठान' का सफरी चरखा वी॰ पी॰ से भेज दिया जाये। चरखा उन्हें अभीतक नहीं मिला है। क्या आप इस ओर ध्यान देंगे? यदि आपको उनका पत्र न मिल सके तो आप मेरी इस चिट्ठीको ही उनका प्रार्थनापत्र मानकर उन्हें चरखा भेज सकते हैं। मैंने उनका जितना पता दिया है, उतना पर्याप्त मानिएगा।

श्री बिड़लाके साथ आपकी वार्ताका अन्तिम परिणाम क्या निकला सो मुझे यथा समय सूचित कीजिएगा।

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५९०) की माइक्रोफिल्मसे।

६२८. पत्र: ब्रजकृष्ण चांदीवालाको

साबरमती आश्रम,
३ जून, १९२६

भाई ब्रजकृष्ण,

तुम्हारा खत आज मिला। मुझको तो दुःख और आश्चर्य हुआ। देवदासके बारेमें तुम्हारा एक पत्र और तार था। तारका उत्तर तारसे ही दिया गया था, और देवदासके हालकी खबर देनेका मैंने महादेवसे कह दिया था। इसके अलावा कोई पत्रका मुझको स्मरण नहीं है। न तुम्हारे किसी कायसे मुझको अप्रसन्नता हुई है। इसका कुछ कारण तो होना चाहिए? ऐसा कोई कारण तुमने नहीं दिया है। मैंने तुमको कह दिया है और दुबारा कहता हूँ, जब दिल चाहे तब आश्रममें आ जाना। इससे अलावा कोई अप्रसन्नता हुई है। नहीं दिया है। मैंने आश्रम में आ जाना।

देवदासको आजकलमें अस्पितालसे छुट्टी मिलेगी। वह सीधा मसुरी चला जायगा। मसुरी जाते हुए अगर तुम वहां होगे तो भेंट हो जायगी। क्योंकि वह अवश्य तुमको खबर दे देगा। परंतु देवदासको देखनेके खातर यहाँ आनेमें विलंब करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है। मेरा फिनलैंड जानेका फीसदी ९९ हिस्सा मोकूफ रहा है।

बापूके आशीर्वाद

मूल पत्र (जी॰ एन॰ २३५२) की फोटो-नकलसे।