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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

अच्छा भी और बुरा भी

बरहमपुर नगर परिषद् (म्युनिसिपल कौंसिल) के उपाध्यक्ष अखिल भारतीय चरखा संघको अपने पत्रमें लिखते हैं:

सिर्फ लड़कोंकी पाठशालाओंमें ५४ चरखे दाखिल किये गये हैं। प्रतिमास दस तोले सूत काता जाता है। कताई शिक्षकको १५ रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। हरएक पाठशालामें प्रतिदिन ४० मिनट की एक कक्षा कताईके लिए निर्धारित है।

बरहमपुर नगर परिषद्के अधीन चलनेवाली लड़कोंकी पाठशालाओंमें चरखेको स्थान मिला है, इस दृष्टिसे तो यह बात बहुत अच्छी है, परन्तु इस मानीमें बुरी है कि इतने चरखे होनेपर भी इतना कम सूत काता जाता है। कोई भी लड़का आधे घंटेमें आसानीसे १० अंकका आधा तोला सूत कात सकता है। इसका मतलब यह हुआ कि ५४ चरखोंपर प्रतिदिन २७ तोले सूत तैयार हो सकता है। अगर महीनेमें २५ कार्य-दिवस माने जायें तो इस हिसाबसे एक महीनेमें ६७५ तोले सूत तैयार होगा। वह कताई-शिक्षक, जो ५४ चरखोंसे प्रतिमास १० तोले सूत पाकर ही सन्तोष मान लेता है, राष्ट्रीय घनमें से प्रतिमास १५ रुपये पानेके योग्य नहीं है। मैं यह आशा करता हूँ कि जो आँकड़े भेजे गये हैं उनमें कहीं भूल है। क्योंकि एक चरखेके लिए भी तो १० तोला सुत बहुत ही कम मिकदार है। चरखे कोई शोभाके साधन तो हैं नहीं। वे तो धनोत्पादक यन्त्र हैं। और यह काम उनके मालिकोंका है कि उन्हें बेकार न पड़े रहने दें। हरएक कताई-शिक्षकको इसे अपने सम्मानका प्रश्न समझना चाहिए कि जितना वेतन उसे दिया जाता है, उसके मुकाबलेमें वह काफी सुत तैयार करा सके। और उस अवस्थामें जब उसके पास एक बड़ी कक्षा हो और लड़कोंके लिए रुई धुनने और पूनियाँ बनानेमें उसे कोई आपत्ति न हो तो वह ऐसा आसानीसे कर सकता है। कताईकी कलामें लड़कोंकी दिलचस्पी बढ़ानेका और उन्हें उसकी शिक्षा देनेका यही उत्तम मार्ग है। स्मरण रहे कि कताईमें धुनने और ओटनेका काम भी शामिल होता है और बुनाई तथा ओटाई इस कलाकी ऐसी प्रक्रियाएँ हैं जिनसे एक दिनमें कताईकी बनिस्बत अधिक आमदनी होती है।

अप्रैलके आँकड़े

अप्रैल महीनेमें खादीकी उत्पत्ति और बिक्रीके आँकड़े नीचे दिये जा रहे है:[१]

आन्ध्रके आँकड़े अपूर्ण हैं और कुछ अंशोंमें कर्नाटकके आँकड़े भी। बम्बईके आँकड़ोंमें अखिल भारतीय खादी भण्डार, चरखा संघ भण्डार और सैंडहर्स्ट रोडकी खादीकी दूकानके ही अंक शामिल हैं। कितना अच्छा हो कि हम सभी प्रान्तोंके पूरे आँकड़े दे सकें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया,३-६-१९२६
  1. ये यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।