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और ऐसे ही दूसरे उद्योग, जिनके द्वारा कृषकोंका शोषण नहीं किया जाता, पूँजीपतियोंके जिम्मे छोड़ देने चाहिए, ताकि वे भी अपनी पूँजीका उपयोग कृषकोंका शोषण और इस तरह भारतकी सम्पत्तिके असली स्रोतको ही तबाह कर देनेके लिए नहीं बल्कि देशकी सम्पत्तिको बढ़ानेके लिए कर सकें।

अगर पूँजीपति खान बहादुरका सुझाव मानकर चलें और अपनी पूँजीका उपयोग ऐसे प्रयोजनोंके लिए करें जो उनके और सर्वसाधारणके लिए भी लाभप्रद भारतकी गरीबी तुरन्त दूर हो तो जाये। खान बहादुरके विचारसे:

जूटकी मिलें, चीनीकी मिलें, रुईको मिलें——ये सबकी-सब कृषकोंके शोषणके लिए हैं और अन्तमें इन शोषित लोगोंको कारखानोंमें गुलामोंकी तरह काम करनेको मजबूर होना पड़ता है। विश्व-युद्धके दौरान जब जूटका निर्यात बन्द हो गया था तब जूटमिलोंके मालिकोंने जूट पैदा करनेवालोंका कोई खयाल नहीं किया। ...इस शोषणका नतीजा यह हुआ कि जूट पैदा करनेवाले लोग गरीब हो गये और जूट मिलोंके मालिकोंने शत-प्रतिशत लाभांश कमाया।

साधन जुटानेकी चतुराई

सत्याग्रह आश्रमके प्रबन्धकने मुझे बताया है कि उनके पास जितनी तकलियोंकी माँग आई है, उतनी तकलियाँ तैयार करवाना उनके लिए कठिन है। इतने सारे लोग तकलियाँ चाहते हैं, यह एक शुभ लक्षण है। लेकिन, अगर कताई एक कला है, और वास्तवमें वह कला है भी, तो इससे लोगोंमें मौका पड़नेपर अपनी जरूरतकी चीजें खुद हो तैयार कर लेने और जुटा लेनेकी चतुराई उभरनी चाहिए। कताईका महत्त्व इसी बातमें निहित है कि इसके लिए केन्द्रसे कोई सहायता न ली जाये। अखिल भारतीय चरखा संघका इरादा यथासम्भव जल्दीसे-जल्दी हर चीजका विकेन्द्रीकरण कर देनेका है। आश्रममें तकलियाँ उन लोगोंके लिए तैयार की जा रही हैं, जिन्हें इस दिशामें प्रवृत्त करनेके लिए कुछ प्रेरणा प्रोत्साहन देनेकी जरूरत है। लेकिन यह तो ऐसा यन्त्र है जिसे हर व्यक्ति खुद ही बना सकता है और उसे बनाना भी चाहिए। सुखे बाँसका एक छोटा-सा टुकड़ा, टूटी स्लेटका एक टुकड़ा, एक चाकू, एक छोटी-सी हथौड़ी, एक छोटी-सी रेती और सम्भव हो तो एक कम्पास——एक पैसेमें अव्वल दर्जेकी एक तकली बनानेके लिए बस इतनी-सी ही चीजोंकी जरूरत है। बाँसकी तकली आधे घंटेके भीतर बनाई जा सकती है और वह उतना ही अच्छा काम करती है जितना कि इस्पातकी तकली। जो लोग कताई-कलापर अधिकार पाना चाहते हैं उन्हें चतुराईसे काम लेना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि कताई गरीबोंकी कला है। वह उनके लिए सन्तोष और सान्वनाका आधार है। इस कलाके साधन भी गरीबसे-गरीब लोगोंके लिए सहज-सुलभ होने चाहिए। इसलिए हर लड़के और लड़कीको खुद ही तकली बनाना सिखाया जाये। उन्हें अपने लिए तकली बनानेमें आनन्दका अनुभव होगा और अपनी बनाई तकलियोंपर कातनेसे उन्हें कताईमें भी पहलेकी अपेक्षा अधिक आनन्द प्राप्त होगा।

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