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कुटिल कानून

बातके पक्षमें यह कहते हैं कि उक्त कानून भारतीयोंके खिलाफ नहीं बनाया जा रहा है, फिर भी उन्हें इस बातको तो स्वीकार करना ही पड़ता है कि इस विधेयकके अन्तर्गत संघ सरकारको ऐसी सत्ता प्राप्त होगी जिसके बलपर, यदि उसे आवश्यक मालूम हो तो, वह भारतीयोंपर भी ऐसा प्रतिबन्ध लगा सकेगी। तब उन्हें श्री एन्ड्रयूज द्वारा कानूनका विरोध करनेपर क्यों आश्चर्य होता है? सैयद साहबको यह भी मालूम होना चाहिए कि दक्षिण आफ्रिकामें बसे भारतीयोंका मानस इस विधेयकको लेकर बहुत आन्दोलित है। अभी-अभी एक तार मिला है, जिसमें दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेसके मन्त्री लिखते हैं:

विश्वास है कि आपने रंगभेद विधेयकके सम्बन्धमें कोई सख्त कदम उठाया होगा। अभीतक उसे शाही मंजूरी नहीं मिली है।

यदि यह आशा रखी जाये कि श्री एन्ड्रयूज हम भारतीयोंकी तरफसे अपनी आवाज उठायें तो निश्चित है कि वे इस अमानवीय विधेयकपर, जिसका प्रधान लक्ष्य दक्षिण आफ्रिकाके वतनी लोग हैं, आपत्ति उठायेंगे। वे एक विश्व-नागरिककी हैसियतसे हम लोगोंमें शामिल हुए हैं, हमारे किसी खास गुणके कारण नहीं। लेकिन यहाँ विवादका विषय उनके इस तरह बीचमें पड़नेका कारण नहीं है। सैयद साहबने विवादकी जो बात उठाई है वह यह है कि यहाँ भारतमें हमें उस विधेयकका विरोध करना चाहिए या नहीं। हम लोगोंने उसका सदा ही विरोध किया है। दक्षिण आफ्रिकाके प्रवासी भारतीयोंने भी उसका विरोध किया है; और अब कान्फरेन्स करनेकी बात तय हो जानेसे हमपर कोई ऐसा बन्धन नहीं लग गया कि हम उसविधेयकका विरोध ही न करें। विरोध न करनेका कोई समझौता भी नहीं था, न हो ही सकता था। इन दो कानूनों के बीच हम भेद कर सकते हैं, जैसा कि हमने किया भी है। रंग-भेद विधेयक प्रभावके लिहाजसे हमारे लिए उतना भयंकर नहीं है जितना कि वर्ग क्षेत्र आरक्षण विधेयक। यही कारण है कि भारतीय शिष्ट-मण्डल और भारतीय जनता, दोनोंने उसीपर अधिक जोर दिया था। परन्तु वर्ग क्षेत्र आरक्षण विधेयकके मुल्तवी कर दिये जानेसे रंग-भेद विधेयकके विरोधमें हम कमी नहीं कर सकते।

इस चर्चा प्रसंगमें जनरल हर्टजोगकी ईमानदारी और नेकनीयती भी कोई मतलब नहीं रखती। जनरल हर्टजोग दक्षिण आफ्रिकाके एक-छत्र शासक नहीं हैं। वे उसके स्थायी प्रधान भी नहीं हैं। कलको वे भी अपने-आपको जनरल स्मट्सकी स्थिति पा सकते हैं। सरकारके लिखित इकरारको ही हम कुछ महत्त्व दे सकते हैं, यद्यपि हमने बहुत भारी कीमत चुका कर यह जाना है कि सरकारको जरूरत होगी तो वह उसे भी कूड़े के ढेरपर फेंक देनेमें कोई संकोच नहीं करेगी। विधेयकका विरोध करना हमारा कर्त्तव्य है, उसक विरोध करनेसे आगामी कान्फरेन्सको कोई खतरा नहीं पैदा हो सकता। कान्फरेन्सके लिए शान्तिपूर्ण और अनुकूल वातावरण बनाये रखने हेतु हमें सिर्फ इतना ही करनेकी जरूरत है कि पहलेसे ही किसीकी सदाशयतामें शक न करें और इस कानूनके उद्देश्य हमारे लिए चाहे जितने भी दु:खद हों, हम उनकी चर्चामें अतिरंजनासे काम न लें और कड़े शब्दोंका प्रयोग न करें। इससे