पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५९२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दरी बनानेमें हो सकता है और इतनी लापरवाहीसे कते सूतकी कीमत तो नाममात्रको ही मिलेगी। इसलिए जो लोग अखिल भारतीय गोरक्षा संघको चन्दे या भेंटमें सूत भेजते रहे हैं वे कृपया ध्यान रखें कि वे कताईमें जितनी लापरवाही बरतते हैं, गोरक्षामें उनका योगदान उसी हदतक कम हो जाता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-६-१९२६

६१९. कुटिल कानून

दक्षिण आफ्रिकाके रंग-भेद विधेयकपर लॉर्ड बर्कनहेडने अपनी राय जाहिर की है। उन्होंने उसे अपना आशीर्वाद दिया है। मैं तो अपनी इस रायपर अब भी कायम हूँ कि जाति-भेद कानूनके रूपमें यह उस वर्ग क्षेत्र आरक्षण विधेयक (क्लास एरियाज़ रिजर्वेशन बिल) से भी बदतर हैं, जिसपर कि आगामी कान्फरेन्समें विचार होनेवाला है। हो सकता है, अभी थोड़े समयतक अथवा कभी भी उसका प्रयोग एशियाइयोंके विरुद्ध न किया जाये। हो सकता है, वर्तनी लोगोंके विरुद्ध भी उसपर बहुत सख्तीसे अमल न किया जाये। परन्तु इस कानूनपर जो आपत्ति उठाई गई है वह उसके मूल सिद्धान्तके कारण और उसमें निहित अनिष्टकी विस्तृत सम्भावनाओंके कारण उठाई गई है। इसलिए इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है कि उससे दक्षिण आफ्रिकामें बसे भारतीयोंका मानस आन्दोलित हो उठा और श्री एन्ड्रयूजने उसके सम्बन्धमें ऐसे सख्त शब्दों का प्रयोग किया। उस विधेयकके खिलाफ प्रवासियोंको पूरे जोर-शोरसे अपना आन्दोलन जारी रखना चाहिए और आगामी कान्फरेन्समें अपना पक्ष पेश करनेकी पूरी तैयारी करनी चाहिए। वे अपना पक्ष चाहे जैसे भी पेश करें, उसमें रंग-भेद कानूनका उल्लेख किये बिना काम नहीं चल सकता, क्योंकि इस एक विधेयकसे ही दूसरे विधेयकमें निहित नीतिका भी आभास मिलता है। रंग-भेद विधेयक वहाँके वतनियों और भारतीय प्रवासियोंके सम्बन्धमें संघ सरकारकी कुटिल नीतिका द्योतक है और वर्ग क्षेत्र आरक्षण विधेयकपर सरकारकी रंग-भेद विधेयक सम्बन्धी नीतिके प्रकाशमें ही विचार करना चाहिए। उसको मुल्तवी कर देनेके यह मानी नहीं कि उस नीतिमें कोई परिवर्तन हुआ है। अधिकसे-अधिक उसका सिर्फ यही अर्थ हो सकता है कि वह कष्ट कुछ दिनोंके लिए मुल्तवी कर दिया गया है। इसलिए इस कठिन समस्यामें जिनकी दिलचस्पी हो उन्हें चौकसीमें तनिक भी कमी नहीं करनी चाहिए। अबतक जो कुछ किया गया सब ध्वंसात्मक था। रचनात्मक कार्य, जो ज्यादा कठिन है, अब आरम्भ हुआ है। बहुत-कुछ भारत सरकारके रवैयेपर निर्भर करेगा। जबतक वहाँ बसे भारतीय दुर्बल हैं तबतक स्थितिका नियन्त्रण भारत सरकारके हाथमें है; जब वे समर्थ हो जायेंगे तब वे अपनी किस्मत खुद ही बना सकेंगे।

लेकिन मुझे यह जानकर दुःख हुआ कि माननीय सैयद रजाअलीका यह खयाल है कि भारतमें रंगभेद विधेयकका कोई विरोध नहीं होना चाहिए। यद्यपि वे अपनी