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६१७. पत्र: नाजुकलाल नन्दलाल चौकसीको

साबरमती आश्रम
बुधवार २ जून, १९२६

भाईश्री ५ नाजुकलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। मैं नहाकर वापस आया तब समाचार मिला कि तुम आकर चले गये। ज़्यादा नहीं रुके, यह ठीक ही किया। मोतीको जहाँ तुम रहो वही जगह अच्छी लगती है और [तुम्हारे बिना] यहाँ अथवा कहीं भी अच्छा नहीं लगता, यह बात मुझे पसन्द है। लेकिन वह एक शर्तपर, मोती मोती न रहकर सुकन्या बन गई है तो वह उसके समान उद्यमी बने और मोतीके दानोंके समान अक्षर लिखे। ऐसा करना उसने स्वीकार तो किया ही है। तुमने फिर इंजेक्शन लेने शुरू किये हैं या नहीं? मेरी निरन्तर यहीं इच्छा है कि तुम्हारी तबीयत बिलकुल ठीक हो जाये।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १२१२८) की फोटो-नकलसे।

६१८. अखिल भारतीय गोरक्षा संघ

मन्त्रीने कुछ और सज्जनोंसे सूत प्राप्त होनेकी सूचना दी है। उसका ब्योरा निम्न प्रकार है:

सदस्योंके चन्दे[१]

संख्या ४,६,८,९,३२ और ३३ ने अबतक क्रमशः २२,०००, २४,०००, १२,४००, ११,०००, २४,००० और २४,००० गज सूत भेजा है।

भेंट में प्राप्त सूत[२]

नकद चन्दे और भेंटमें कुल ६,१०० रुपये १५ आने प्राप्त हुए हैं। चन्दे और भेंटमें मिले सूतकी बिक्रीसे २६ रुपये ६ आने ६ पाई आये हैं। जो लोग भेंट स्वरूप हाथकता सूत भेजते हैं, वे इस बातकी ओर ध्यान दें कि वे सूत कातनेमें जितनी मेहनत करते हैं, अगर ज्यादा सावधानी और कुशलतापूर्वक इतनी ही मेहनत करेंगे तो उनकी भेंटकी कीमत शायद दूनी हो जायेगी। जो सूत प्राप्त हुआ है, वह बहुत लापरवाहीसे काता गया है। कुछकी तो बाजारमें कोई कीमत ही नहीं मिल सकती, क्योंकि उससे खादी नहीं बुनी जा सकती। उसका उपयोग सिर्फ रस्सी बनाने या ज्यादासे-ज्यादा

  1. इनके ब्योरे यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।
  2. इनके ब्योरे यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।