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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  करते नहीं पायेंगे। मेरी बीचमें पड़नेकी कोई इच्छा नहीं है; पड़ना भी होगा तो सिर्फ शान्ति स्थापित करनेके लिए ही पड़ूँगा। यह सारा झगड़ा मेरे लिए बहुत दुःखद है।[१]

हृदयसे आपका,

श्री एम॰ आर॰ जयकर


३९१, ठाकुरद्वारा


बम्बई—२

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११३१७) फोटो-नकलसे।

६१६. पत्र: सी॰ विजयराघवाचारीको

साबरमती आश्रम
२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[२] और तार, दोनों मिले। अब मैंने 'नॉर्टन कन्वर्सेशन' ढूँढ लिया है। देवदासके यहाँ न होनेसे कुछ देर हो गई। अब मैं रजिस्ट्री द्वारा उसे भेज रहा हूँ।

'यंग इंडिया' कार्यालयके प्रबन्धकको भी समुचित कार्रवाई करनेको लिख रहा हूँ। पिछले अंक दे सकना कठिन है। उसमें आत्मकथा प्रकाशित हो रही है, इसलिए लगभग सब बिक चुके हैं, लेकिन उसका पहला भाग मैं एक पुस्तकके रूपमें प्रकाशित करा रहा हूँ। इसलिए यदि पुराने अंक नहीं मिल पाते, तो आपको कुछ प्रतीक्षा करनी होगी। प्रेसमें सही स्थिति क्या है, मैं नहीं जानता।

समझौता और समझौतेका अन्त[३] बीती बातें हैं। जो बीत गई, उसे भूल ही जाइए। जो भी हो, मैं तो उसकी चिन्ता नहीं करता।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सी॰ विजयराघवाचारी


'फेयरी फॉल्स व्यू'


कोडाइकनाल आब्जर्वेटरी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२०५१) की फोटो नकल से।


स्वाभाविक प्रवाह अपने मार्गसे हट जा सकता है।...यदि कांग्रेसकी इन दो शाखाओंको लड़ना ही है, जैसा कि अनिवार्य प्रतीत होता है, तो हमारा निर्णय उसे यथाशक्ति निर्दोष और शिष्टजनोचित बनानेका ही होना चाहिए।...

  1. स्वराज्यवादियों और प्रतिसहयोगी सहयोगियों (रेस्पॉन्सिव को-ऑपरेशनिस्ट) के बीच हुआ साबरमतीका समझौता; देखिए परिशिष्ट २।
  2. तारीख ११-५-१९२६ का।
  3. देखिए परिशिष्ट २।