पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

६१४. पत्र: जयसुखलाल ए॰ गांधीको

आश्रम
१ जून, १९२६

चि॰ जयसुखलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। कृष्णदासके बीमार होनेके कारण उक्त पत्र मेरे हाथमें देरसे आया। बुनाईशालाकी बात समझ गया। बुनाईशाला कहाँ खोलोगे? उसपर कितना खर्च होगा? आगामी वर्षके लिए कार्यक्रमपर विचार करूँगा। मन्दिरके बारेमें तुम ऐसा तो नहीं मानते कि अन्त्यज भाई किसी भी दिन ब्राह्मणों अथवा उच्च वर्णोंकी सेवा करनेसे इनकार कर ही नहीं सकते अर्थात् हड़ताल नहीं कर सकते? इस समय तो तुमने जो सलाह दी वह ठीक ही थी। उनमें हड़ताल करनेकी शक्ति नहीं आई है। सत्याग्रह करनेके लिए मनकी जो स्वच्छता चाहिए वह नहीं आई है। लेकिन किसी दिन तो शायद उन्हें सत्याग्रह करना पड़ेगा। तुम मन्दिर आते-जाते रहना और उसकी उन्नतिमें रस लेना।

उमियाका[१] क्या हुआ? वह कहाँ है? देवदास और उसके साथी लालजी मसूरी ही जायेंगे, ऐसा लगता है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९१४) की माइक्रोफिल्मसे।

६१५. पत्र: एम॰ आर॰ जयकरको

साबरमती आश्रम
२ जून, १९२६

प्रियश्री जयकर,

आपका पत्र मिला।[२] समझौतेके सम्बन्धमें मेरा मन उतना भी लिखनेको नहीं होता जितना कि लिखा है। अब आप आगे मुझे इस सम्बन्धमें कुछ और लिखते या

  1. जयसुखलालकी पुत्री।
  2. २८-५-१९२६ के अपने इस पत्रमें जयकरने लिखा था, "...अखबारी रिपोर्टके अनुसार अपनी भेंटवार्तामें आपने लोगोंको कांग्रेसी उम्मीदवारोंका समर्थन करनेके लिए कहा है। अनुमानतः इसका अर्थ यही है कि यह समर्थन उन्हें उनके विपक्षियोंके खिलाफ दिया जाना चाहिए। आप मुझे यह कहनेकी इजाजत देंगे कि आपका यह कथन अनेक प्रतिसहयोगियों (रेस्पॉन्सिविस्ट्स) के लिए अन्यायपूर्ण है। आप जानते हैं कि प्रतिसहयोगी हमेशा कांग्रेसी रहे हैं...और आपके मुँहसे निकले कोई भी शब्द जिनका उद्देश्य मतदाताको प्रभावित करना हो, हानिकर सिद्ध हो सकते हैं; उनसे अगले चुनावका