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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए पूँजीवादका विरोध पूँजीवादियोंके तरीकोंसे नहीं, बल्कि किसी अच्छे और नये तरीकेसे करना है। अगर कर्मचारीगण अपने अन्दरकी शक्तिको पहचान लें तो वे आजकी तरह सिर्फ बाहरी रूपको ही नहीं बदल देंगे बल्कि वे वास्तविक स्थितिमें भी कान्तिकारी परिवर्तन कर देंगे। और इस वांछनीय सुधारके लिए तो शक्ति अंदरसे ही आती है। इसके लिए किसीको इस दिशामें सबके कदम उठाने तक इन्तजार करनेकी जरूरत नहीं पड़ती। शुभारम्भ करनेवाला एक ही व्यक्ति अन्तमें इस तन्त्रको समाप्त कर देनेके लिए पर्याप्त साबित होगा। लेकिन, मैं यह बात निस्संकोच स्वीकार करूँगा कि बीचकी अवधिमें उसे सबकी नाराजगी और अलगाव या इससे भी बुरी स्थितिका सामना करना पड़ सकता है। मगर, यह सब तो लगभग हरएक सुधारकको झेलना ही पड़ता है।

हृदयसे आपका,

विलहेम वार्टेनबर्ग


हैम्बर्ग, २३


जर्मनी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४७१) की फोटो-नकल से।

हृदयसे आपका,

६१३. पत्र: दिनशा मंचरजी मुंशीको

आश्रम
१ जून, १९२६

भाईश्री ५ मुंशी

सद्गुरु मिलना उतना आसान नहीं है जितना आप समझते हैं। मैं तो सम्पूर्ण पुरुषकी शोधमें हूँ। यह सम्पूर्ण पुरुष महान् तपश्चर्याके बिना और जबतक मैं स्वयं कुछ हदतक सम्पूर्णताको प्राप्त नहीं होता तबतक नहीं मिल सकता। गुरुकी खोज करते हुए भी मनुष्य सावधान रहता है और योग्यता प्राप्त करता है। इसलिए मैं निश्चिन्त होकर अपना काम करता जा रहा हूँ। गुरुका मिलना ईश्वरका प्रसाद है। अर्थात् जब मैं लायक बनूँगा तब मुझे घर बैठे गुरु मिल जायेंगे। इस बीच अदृश्य गुरुकी बन्दना तो मैं नित्य करता ही हूँ।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १९९१३) की माइक्रोफिल्मसे।