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६०५. पत्र: ए॰ आई॰ काजीको

साबरमती आश्रम
३० मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पिछली २४ अप्रैलका पत्र तथा उसमें उल्लिखित सभी सह-पत्र प्राप्त हुए। आपका तार भी अभी-अभी मिला है। मेरी श्री एन्ड्रयूजसे काफी देरतक बातचीत हुई। वे इस समय भी मेरे साथ आश्रममें ही हैं। यह विजय बहुत बड़ी है, लेकिन अभी बहुत काम करना शेष है; वास्तवमें जितना-कुछ पहले हो चुका है, उससे अधिक करना बाकी है, क्योंकि अभीतक जो काम हो पाया है, वह आवश्यक विध्वंसका काम था। अब रचनात्मक कार्य शुरू कर देना चाहिए।

आपने अपने तारमें तीन मुद्दे उठाये हैं। जहाँतक मैं समझ सकता हूँ, गोलमेज परिषद्में कांग्रेस कोई सीधा हिस्सा नहीं लेगी। लेकिन कांग्रेसको अपनी बात सामने रखनी ही होगी। मेरा खयाल है कि सम्मेलन दोनों सरकारोंके प्रतिनिधियोंके बीच होगा। लेकिन श्री एन्ड्रयूज और अन्य लोग सावधानीसे स्थितिपर निगाह रखे हुए हैं और जो-कुछ भी किया जा सकता है, अवश्य किया जायेगा। यदि वहाँ आप लोगोंकी ओरसे कोई कदम उठाना जरूरी होगा तो आपको तदनुसार लिख दिया जायेगा।

कांग्रेसका वार्षिक अधिवेशन जोहानिसबर्गमें करनेका विचार बहुत अच्छा है। आपके प्रस्तावोंका सम्बन्ध मुख्य रूपसे उन्हीं बुनियादी मुद्दोंसे होना चाहिए, जिनपर सम्मेलनको विचार करना है और प्रस्ताव बहुत सीधे-सादे होने चाहिए। आपके प्रस्तावोंमें माँगें बहुत बढ़ा-चढ़ाकर न की जायें, उनमें दृढ़ता हो, बातें संक्षेपमें और प्रभावशाली ढंगसे कही जायें और वे यथातथ्य हों।

रंग-भेद विधेयक पेश होनेके पश्चात् मैंने उसके बारेमें अपने विचार कड़ेसे-कड़े शब्दोंमें व्यक्त किये हैं। सभी पक्षोंने कदम उठाया है। श्री एन्ड्रयूज वाइसरायसे मिल आये हैं, लेकिन मुझे तो बहुत आशंका है कि विधेयकको सम्राट्की स्वीकृति मिल जायेगी। होगा यह कि कमसे-कम अभी कुछ समयतक वह कानून वहाँ रहनेवाले भारतीयोंपर लागू नहीं किया जायेगा और यदि हम मजबूत हों, एक होकर रहें और संयत तरीकेसे काम लें तो हो सकता है कि वह उनपर कभी भी लागू न किया जाये।

हृदयसे आपका,

श्री ए॰ आई॰ काजी


अवैतनिक महामन्त्री
दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेस
१७५, ग्रे स्टीट


डर्बन, दक्षिण आफ्रिका

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११९६०) की माइक्रोफिल्मसे।