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पत्र: ए॰ ए॰ पॉलको

होगी——कमसे-कम मेरे लिए तो होगी ही। मैं मानता हूँ कि अगर मुझे विश्व-समितिकी ओरसे निमन्त्रित किया जाता है तो मेरी यात्राका खर्च भी उसीको उठाना चाहिए; लेकिन अभी तो स्थिति यह है कि खर्च आपको उठाना पड़ेगा। इसलिए यहाँ तो यही लगता है कि आप परिस्थितियोंसे विवश हो गये हैं। अतएव, मेरी साफ सलाह है कि आप निमन्त्रणकी बात भूल जाइये और इस मामलेको बिलकुल खत्म कर दीजिए। इसलिए अगर आपको ऐसा नहीं लगे कि मेरे न जानेसे आपकी स्थिति अटपटी हो जायेगी या आपको परेशानी होगी तो मैं कहूँगा कि आप इस मामलेको खत्म हुआ मान लीजिए। लेकिन, अगर किसी भी तरहसे आपकी स्थिति अटपटी होती हो या आप परेशानी महसूस करते हों तो मैं खुशी-खुशी अपने निर्णयपर पुनर्विचार करूँगा। लेकिन अगर इसपर पुनर्विचार करना हो और आपके लिए सेलमसे निकल पाना सम्भव हो तो क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आप आश्रम आ जायें ताकि हम लोग सारे मामलेपर पूरी तरह विचार कर सकें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११३५३) की फोटो-नकलसे।

६०४. पत्र: ए॰ ए॰ पॉलको

साबरमती आश्रम
३० मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। उसके साथ चीनसे आये पत्रकी एक नकल भी मिली। मेरा खयाल है कि शायद मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि अगर यहाँकी परिस्थितियाँ बाधक न हुई तो मैं अगले वर्ष चीनी मित्रोंकी इच्छाके अनुसार चीन जानेको तैयार हूँ।

हृदयसे आपका,

श्री ए॰ ए॰ पॉल


७, मिलर रोड


किलपॉक, मद्रास

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११३७२) की फोटो-नकलसे।