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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  मुझे यूरोपमें अन्य स्थानोंसे निमन्त्रण आयेंगे तो उन्हें स्वीकार करना न करना मैं अपनी मर्जीपर ही रखना चाहता हूँ। उस हालतमें लन्दनसे हेलसिंगफोर्सका वापसी टिकट लेना शायद ठीक नहीं होगा। वैसे मुझे रोमाँ रोलाँ साहबको देखने जेनेवा तो हर हालतमें जाना हैं। इसलिए जरूरी नहीं कि यूरोपमें मेरी वापसी उसी रास्तेसे हो, जिस रास्तेसे मैं कहीं जाऊँ।

जहाँतक पासपोर्टका सम्बन्ध है आप कृपया इस बातको ध्यानमें रखेंगे कि मुझे कहाँ और कब जाना होगा। इस विषयमें कोई शर्त मंजूर नहीं कीजिएगा।

आप मुझे समय-समयपर सूचित करते रहिए कि इस दिशामें आपने कहाँतक प्रगति की है। कहने की जरूरत नहीं कि अगर आप १५ जूनके जहाजके बजाय १ जुलाईको छूटनेवाले जहाजसे मेरे साथ चलें तो मुझे बड़ी खुशी होगी।

मैं नहीं समझता कि यूरोपमें बकरीका दूध मिलनेमें कोई कठिनाई होगी। इसके अलावा बकरीके दूधको गाढ़ा करके अथवा सुखाकर कीटाणुविहीन बनाकर भी तो रखा जा सकता है। वैसे दूधको सुखाकर रखना तो सबसे अच्छा है। यह बिलकुल पाउडर ही हो जाता है।

हृदयसे आपका,

श्री के॰ टी॰ पॉल


थोट्टम


सेलंम

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११३५२) की फोटो-नकलसे।

६०३. पत्र: के॰ टी॰ पॉलको[१]

३० मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। श्री एन्ड्रयूज पिछले तीन दिनोंसे यही हैं। उन्होंने आपका पत्र और हम दोनोंके बीच हुआ शेष पत्र-व्यवहार भी पढ़ लिया है। बहुत गम्भीरतापूर्वक और प्रार्थनापूर्ण मनसे विचार करनेपर हम दोनों इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि या तो निमन्त्रण रद कर दिया जाये या फिर मैं ही फिनलैंड न जानेका फैसला कर लूँ। मुझे लगता है कि यह निमन्त्रण वास्तवमें आपकी ओरसे भेजा गया है। और इसमें विश्व-समितिका तो नाम-भर है। और फिर भी, अगर मैं जाता हूँ तो यही कहा जायेगा कि मैं आपके निमन्त्रणपर नहीं, बल्कि विश्व-समितिके निमन्त्रणपर गया। मुझे लगता है कि यह आपके लिए भी और मेरे लिए भी गलत बात

  1. यह पत्र शामके चार बजे बोलकर लिखाया गया। इसपर इस प्रकार टिप्पणी है: "नहीं भेजा गया। रोक रखा गया।"