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५९४. पत्र: कृष्णदासको

साबरमती आश्रम
२९ मई, १९२६

प्रिय कृष्णदास,

अब मैंने तुम्हारा लम्बा पत्र ध्यानसे पढ़ लिया है। तुमने जो तथ्य बताये हैं, उनके अनुसार तुम्हारे पिताजीको किसी भी तरहसे दोषी नहीं माना जा सकता। तुम ऐसा तो नहीं चाहते कि इस दुर्भाग्यपूर्ण मामलेके बारेमें मैं हरदयाल बाबूको कुछ लिखूँ? अगर चाहो तो मैं उन्हें खुशी-खुशी लिखूँगा।

अब मुझे लग रहा है कि फिनलैडका निमन्त्रण रद हो जायेगा। खुद श्री के॰ टी॰ पॉलकी ही कठिनाइयोंको देखते हुए मैंने उन्हें इसका सुझाव दिया है।[१] अगले हफ्ते उनका उत्तर मिल जायेगा।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत कृष्णदास


मार्फत एस॰ सी॰ गुह


दरभंगा

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५८१) की फोटो-नकलसे।

५९५. पत्र: च॰ राजगोपालाचारीको

साबरमती आश्रम
२९ मई, १९२६

यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि आपका 'स्वास्थ्य बहुत अच्छा' है। शंकरलालने आपको पत्र लिखा होगा। लेकिन, जो भी हो, मैं १५ जूनको आपके आश्रम पहुँच जानेकी उम्मीद रखता हूँ। जबतक आप दौरेपर रहें, कहनेकी जरूरत नहीं कि लक्ष्मीको यहीं छोड़ दें।

छोटालाल यहाँ-वहाँ दौड़ रहा। वह बहुत उद्विग्न मनःस्थितिमें है। वह खादी प्रतिष्ठान गया था और वहाँ कुछ दिन सतीश बाबूके साथ रहा। अब वह वर्धामें है। मैंने उससे कुछ दिन आपके साथ रहकर आपके काममें मदद देनेको कहा था। लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं था। उसने कहा कि अगर आपको जरूरत हो तो वह आपकी व्यक्तिगत सेवा खुशी-खुशी करेगा, लेकिन वैसे वह यह कह सकनेकी स्थितिमें नहीं था कि आपके साथ रह कर चैन महसूस करेगा या नहीं। लेकिन, अब

  1. देखिए "तार: के॰ टी॰ पॉलको", २३-५-१९२६