पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५६९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



५९०. पत्र: जी॰ आर॰ एस॰ रावको

साबरमती आश्रम
२८ मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपके पत्रके लिए मेरा सन्देश यह रहा:

"मुझे आशा है कि यह पत्र चरखा और कताई तथा इन दोनोंसे जिन अन्य बातोंका बोध होता है, उन सबका पक्ष-पोषक है।"

'यंग इंडिया' की विनिमय-सूची तो बे-हिसाब बढ़ गई है और आजकल इसकी ग्राहक संख्या भी सीमित ही है। इसलिए आपके पत्रके बदले आपको 'यंग इंडिया' की प्रति भेजना मुश्किल है। अगर आप बंगलौरमें किन्हीं मित्रसे उसे प्राप्त कर सकें तो अच्छा हो। इस तरह मैं उतने खर्चसे बच जाऊँगा।

आपको अपना अखबार भेजनेकी जरूरत नहीं है, और कारणसे नहीं तो इस बातका खयाल करके कि 'यंग इंडिया' के सम्पादनके लिए हम विनिमयमें आई पत्र-पत्रिकाओंकी खबरों और टिप्पणियोंपर निर्भर नहीं करते, क्योंकि यह दरअसल कोई समाचारपत्र नहीं है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जी॰ आर॰ एस॰ राव


प्रधान सम्पादक
'प्रजा मित्र'
कमला विलास
कोट्टनपेठ


बंगलौर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५७८) की माइक्रोफिल्मसे।