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पत्र: एस॰ अरुणाचलम्को

  उन यूरोपीय राज्यों, जहाँ रोमन कैथोलिक मतका बोलबाला है और जहाँ प्रोटेस्टेंट मतका प्राधान्य है, उनके बीच वैसा कोई भेद कर सकूँ जैसा आपने किया है। और इसी कारणसे मैं तीसरे मुद्देपर भी, जो दूसरेके समान ही दिलचस्प है, चुप रहना ही पसन्द करूँगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि मानव समाज ईश्वरको किस दृष्टिसे देखता है, इस बातका उस समाजपर बड़ा असर होता है। जहाँतक भारतका सम्बन्ध है, अधिकांश लोग ईश्वरको हममें से हरएकके अन्दर बैठे कर्त्ता और संचालकके रूपमें देखते हैं; यहाँतक कि अशिक्षित जनसमुदाय भी जानता है कि ईश्वर एक है। वह सर्वव्यापी है और इसलिए सदा हमारे सारे कर्मोको देखता रहता है।

अगर आप उन दो मुद्दोंके बारेमें, जिन्हें मैं अभी अंशतः ही समझता हूँ, विस्तारपूर्वक समझाकर लिखना चाहते हों और यदि आपके पास समय हो तो अवश्य लिख भेजिए। मैं उन्हें अपने तई अधिकसे-अधिक ध्यानसे पढ़ूँगा और मैं जानता हूँ कि उससे मुझे लाभ होगा।

हृदयसे आपका,

डॉ॰ नॉरमन ली


ब्रेल्सफोर्ड
डर्बीके पास


इंग्लैंड

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४६८) की फोटो-नकलसे।

५८८. पत्र: एस॰ अरुणाचलम्को

साबरमती आश्रम
२८ मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। प्रसन्नताकी बात है कि आप अखिल भारतीय चरखा संघको थोड़ा-सा सूत भेज रहे हैं। चूँकि आप बहुत कमजोर हैं, इसलिए आपके कताई करनेका सवाल ही नहीं उठता।

सत्याग्रह आश्रमके नियम[१] नटेसन द्वारा प्रकाशित मेरे भाषणों और लेखोंके संकलनके परिशिष्टमें छपे हुए हैं। पुस्तकका एक नया संस्करण शीघ्र ही तैयार किया जानेवाला है।

मेरा खयाल है कि आपको चिकित्सकसे सलाह लेने या हलका-सा इलाज करवानेमें संकोच नहीं करना चाहिए। वैसे अगर ईश्वरमें आपकी अडिग आस्था

  1. देखिए खण्ड १३ पृष्ठ ९५-१०१।