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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यूरोप जानेकी बात तो अभी तय नहीं कर सका हूँ। रोलाँके पत्र अथवा तारकी राह फिलहाल तो देख रहा हूँ। राजाका कहना है कि यदि मैं जाऊँ तो मुझे तुम्हें साथ ले ही जाना चाहिए। तुम्हारी इच्छा होती है क्या?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २०४३) की फोटो-नकलसे।

५८४. पत्र: राजारामको

साबरमती आश्रम
बृहस्पतिवार, २७ मई, १९२६

भाई राजाराम,

तुम्हारा पत्र मिला। अपने लड़केको तुम जैसी तालीम देना चाहते हो वैसी तालीममें यदि वह उद्यमी है तो दो वर्ष लगेंगे। इससे कम समयमें कातने और बुननेकी मूल बातें तो सीखी जा सकती हैं, लेकिन मैंने अनुभवसे देखा है कि इतना काफी नहीं है। और यदि अपूर्ण अभ्यासवाला व्यक्ति गाँवमें जाकर बैठे तो उसे प्रायः निराश होना पड़ता है। हर महीने १५ रुपये खर्च आनेकी सम्भावना है। यदि सुरेन्द्ररायको भेजना चाहो तो मुझे अथवा व्यवस्थापकको लिखना जिससे रहनेका प्रबन्ध करके उसे बुलाया जा सके। फिलहाल तो आश्रममें खासी भीड़ है। इसलिए उसे दाखिल करनेमें कदाचित् थोड़ा समय लग जायेगा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १२१८६) की माइक्रोफिल्मसे।

५८५. पत्र: देवप्रसाद सर्वाधिकारीको

साबरमती आश्रम
२८ मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला, बड़ी खुशी हुई। निश्चय ही शिष्टमण्डलने अपना फर्ज अच्छी तरह निभाया है। अब आप तथा आपके साथियों द्वारा किये गये अच्छे कार्यको जारी रखनेका दायित्व यहाँ हम लोगोंका है।

हाँ, श्री एन्ड्रयूजके अनवरत श्रम और अडिग विश्वासके बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता था। अभी तो मैं, यहाँ और दक्षिण आफ्रिकामें जो-कुछ हो रहा है, उस सबपर नजर रखने और सारी परिस्थितियोंसे अपना सम्पर्क बनाये रखनेके अलावा और कुछ नहीं कर रहा हूँ।