पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५६१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२५
उसका रहस्य

अगर मैं उसके पास उस निश्चित और स्पष्ट उद्देश्यको लेकर नहीं जाता हूँ तो अपने कर्त्तव्यसे च्युत होता हूँ।

अब मौजूदा सवालके बारेमें दो शब्द कहूँगा। मैं कार्यवाहक गवर्नरके निमन्त्रणपर ही उनसे मिलने गया था। उन्होंने मुझे गवर्नरकी हैसियतसे पत्र नहीं लिखा था और न किसी ऐसे प्रयोजनसे ही जो गवर्नरके रूपमें उनके दायित्वसे जुड़ा हुआ था। उन्होंने कृषि-सम्बन्धी मामलोंपर बातचीत करनेके लिए मुझे महाबलेश्वर आनेको निमन्त्रित किया था। जैसा कि मैंने कुछ दिन पूर्व 'नवजीवन' में स्पष्ट कर दिया था, मैंने उनसे कहा कि 'रायल कमिशन' से मेरा किसी भी तरहका कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता; मेरे असहयोग-सम्बन्धी विचार अब भी पूर्ववत् कायम हैं और आम तौरपर सरकारी आयोगों या समितियोंमें मेरा कोई विश्वास नहीं है। मैंने यह भी लिख दिया था कि जब आप पहाड़से लौट आयेंगे तब आपसे मिलना मेरे लिए ज्यादा आसान होगा। इसपर परमश्रेष्ठ ने मुझे लिखा कि मुझसे जूनमें मुलाकात करना उनके लिए सुविधाजनक रहेगा। मगर बादमें उन्होंने अपना विचार बदल दिया और मुझको सन्देशा भेजा कि अगर मैं महाबलेश्वर आ सकूँ तो उनके लिए ज्यादा सुविधाजनक रहेगा। मुझे उनसे मिलनेमें कोई हिचक नहीं हुई। हमारे बीच मुलाकातोंमें बहुत लम्बी वार्ताएँ हुईं और आप अनुमान लगा सकते हैं (और वह ठीक ही होगा) कि हमारी बातचीतका विषय चरखा था। मुख्य विषय वहीं था। हाँ, भयंकर मवेशी-समस्यापर विचार किये बिना कृषिके विषयमें मैं कोई चर्चा कैसे कर सकता था?

अपरिवर्तनवादी मित्रोंके साथ हुई उस सुखद वार्ताका मैंने संक्षिप्त सार ही दिया है। हाँ, आम पाठक ज्यादा अच्छी तरह समझ सकें, इस खयालसे कहीं-कहीं मैंने अपने उत्तरको जरा बढ़ाकर भी समझाया है।

और भी कई बातोंकी चर्चा हुई, जिसमें एक-दोका उल्लेख मुझे अवश्य करना चाहिए। मुझसे साबरमती-समझौतेपर अपना विचार व्यक्त करनेको कहा गया। मैंने प्रकाशनार्थ कुछ भी कहनेसे इनकार कर दिया। कोई विवादास्पद बात कहकर मैं सम्बन्धित पक्षोंकी मौजूदा कटुताको और अधिक बढ़ाना नहीं चाहता। मेरे पास कहनेको ऐसा कुछ नहीं है, जिससे दोनों दल एक हो सकें। वे सब मेरे सहयोगी हैं। सबके-सब देश-भक्त हैं। यह बिलकुल आपसी झगड़ा है। देशके एक विनम्र सेवकके रूपमें मेरे लिए यही शोभनीय है कि जहाँ कुछ बोलनेसे बात न बने वहाँ चुप ही रहूँ। इसलिए मैं प्रतीक्षा और प्रार्थना करना बेहतर समझता हूँ। मुझे बताया गया कि मुझे गलत रूपमें पेश किया गया। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि समझौतेसे सम्बन्धित कागजात मैंने जान-बूझकर नहीं पढ़े। लोग जिन्दगी-भर मुझे गलत रूपमें पेश करते रहे हैं, इसलिए मैं तो उसका आदी हो गया हूँ। यह तो हर सार्वजनिक कार्यकर्त्ताको भोगना पड़ता है। उसे अपनी खाल मोटी करनी पड़ती है। अगर कोई सार्वजनिक कार्यकर्त्ता, उसे जितनी बार गलत रूपमें पेश किया जाये, उतनी बार उत्तर और स्पष्टीकरण देने लग जाये तो उसके लिए जीवन भार बन जायेगा। मेरे जीवनका सिद्धान्त यह है कि जबतक हमारे अनुष्ठानके हितमें जरूरी न हो तबतक