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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  दूसरा पक्ष अपनी ओरसे कोई उत्साह ही नहीं दिखा रहा हो? समझमें नहीं आता कि गवर्नरसे मिलनेमें आपका क्या मकसद हो सकता था?"

मेरा उत्तर तो यह है कि जब मेरे पास शक्ति हो, मैं यह भी कर सकता हूँ कि अपने विरोधीकी अनिच्छाके बावजूद उसे अपनी बात सुननेपर मजबूर करूँ। दक्षिण आफ्रिकामें मैंने ऐसा ही किया। जब मैंने यह देख लिया कि अब मैं लड़ाईके लिए तैयार हूँ तब मैंने कोशिश कर-करके जनरल स्मट्ससे एककेबाद-एक, कई मुलाकातें कीं, मैंने उनसे अनुनय-विनय की कि अगर कूच करना पड़ा—मेरा मतलब उस महान् ऐतिहासिक कूचसे[१] है—तो भारतीय प्रवासियोंको अकथनीय कष्ट उठाने पड़ेंगे, इसलिए आप ऐसा कीजिए जिससे कूच न करना पड़े और वे लोग उन कष्टोंसे बच सकें। यह सच है कि उन्होंने अहंकारवश हमारे निवेदनको अनसुना कर दिया, लेकिन इससे मैंने कुछ नहीं खोया। मेरी विनम्रताने मुझे और भी शक्ति प्रदान की। अतः जब हममें स्वतन्त्रताके लिए सचमुच लड़नेकी शक्ति आ जायेगी तो मैं भारतमें भी वैसा ही करूँगा। याद रखिए कि हमारी लड़ाई अहिंसात्मक है। विनम्रता इसकी एक आवश्यक शर्त है। यह सत्यकी लड़ाई है और सत्यके बोधसे हमें दृढ़ता प्राप्त होनी चाहिए। हम लोग मनुष्यका संहार करने नहीं निकले हैं। हम नहीं मानते कि हमारा कोई शत्रु है। दुनियामें किसीके प्रति हमारे मनमें दुर्भाव नहीं हैं। हम स्वयं कष्ट उठाकर विरोधीको सही रास्तेपर लाना चाहते हैं। मैं तो कठोरसे-कठोर हृदयवाले या स्वार्थीसे-स्वार्थी अंग्रेजके हृदयको भी बदल देनेकी सम्भावनाके प्रति निराश नहीं हूँ। इसलिए उससे मिलनेके हर अवसरका मैं स्वागत करता हूँ।

यहाँ मैं सहयोग असहयोगका भेद जरा स्पष्ट कर दूँ। अहिंसात्मक असहयोगका मतलब है, जिस संस्थासे हम असहयोग कर रहे हैं उससे मिलनेवाले लाभका त्याग कर देना। इसलिए हम इस प्रणालीके अन्तर्गत आनेवाले स्कूलों, न्यायालयों, खिताबों, विधानसभाओं और पदोंके लाभको अस्वीकार करते हैं। हमारे असहयोगका सबसे व्यापक और स्थायी अंग विदेशी वस्त्रका त्याग है। यह वस्त्र उस जघन्य प्रणालीका आधार स्तम्भ है, जिसके शोषणकी चक्कीमें हम पिस रहे हैं। दूसरे मामलोंमें भी असहयोग करनेकी बात सोची जा सकती है, लेकिन अपनी कमजोरी या असमर्थताके कारण हमने अभी असहयोगको इन्हीं विषयोंतक सीमित कर रखा है। इसलिए अगर मैं किसी अधिकारीके पास उपर्युक्त लाभ प्राप्त करने जाता हूँ तो उसका मतलब है कि मैं उसके साथ सहयोग कर रहा हूँ। किन्तु, अगर मैं मामूलीसे-मामूली अधिकारीके पास भी इस उद्देश्यसे जाता हूँ कि उसको सही रास्तेपर ला सकूँ—उदाहरणके लिए, उसे खादी प्रेमी बना सकूँ, या अपनी नौकरी छोड़नेपर राजी कर सकूँ अथवा अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलोंसे हटा लेनेको मना सकूँ—तो इसका मतलब होगा कि मैंने वही किया जो असहयोगीकी हैसियतसे मेरा कर्त्तव्य है और

  1. ६ नवम्बर, १९१३ को दो हजारसे अधिक भारतीयोंने ३ पौंडी करके विरोधमें गांधीजीके नेतृत्वमें वह ऐतिहासिक कूच किया था; देखिए खण्ड १२, पृष्ठ २५२ और ६४२।