पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५५६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

५७७. पत्र: देवदास गांधीको

साबरमती आश्रम
मंगलवार [२५ मई, १९२६][१]

चि॰ देवदास,

तुम्हारे दो पत्र आज एक साथ मिले। दूसरा पत्र जरा चौंकानेवाला है अवश्य लेकिन ऐसे उतार चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। इसलिए मैं निश्चिन्त रहता हूँ। लेकिन ऐसा लगता है कि अब तो तुम्हें और भाईलालजीको एक साथ ही [अस्पतालसे] छुट्टी मिलेगी। लेकिन मुझे ब्योरेवार खबर तो मिलती ही रहनी चाहिए न? आज फिनलैंड [की यात्रा] के बारेमें तार आ गया है कि जनीवा समितिने मेरी शर्तोंको स्वीकार किया है। तिसपर भी जबतक मेरे पत्रका उत्तर नहीं मिल जाता तबतक, मैं ऐसा माननेवाला नहीं हूँ कि जा ही रहा हूँ। हाँ, ऐसा लगता है कि अब जाना ही पड़ेगा। यदि ऐसा हो तो भी तुम थोड़ा समय मसूरीमें जमनालालके साथ बिताओ, यह ठीक है। केशूके बारेमें मैं कल ही लिख चुका हूँ। वह कुसुम और धीरुको लेकर ही आए। रामदास आज मोरवीमें है, कल राजकोट पहुँचेगा। भणसालीका उपवास आज साढ़े दस बजे पूरा हुआ। उनका शरीर इतना अच्छा रहा है, कोई मान ही नहीं सकता कि उन्होंने २५ दिनोंतक उपवास किया है। वजन १६ पौण्ड कम हो गया है। यह मैं कम समझता हूँ।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९४९३) की फोटो-नकलसे।

५७८. पत्र: मूलशंकरको

आश्रम
२६ मई, १९२६

भाईश्री मूलशंकर,

तुम्हारा पत्र मिला।

चरखा संघकी ओरसे तुम्हें जो उत्तर मिला है यदि उसमें दिये हुए तथ्य सही हों तो तुम्हें कुछ कहनेको ही नहीं रह जाता है।

तुम्हारा उत्तर पानेके बाद यदि आवश्यकता जान पड़ी तो मैं भाई कोटकको लिखूँगा।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५७५) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. भणसालीके उपवासका बारहवाँ दिन १२ मई, १९२६ को था; देखिए "पत्र: महादेव देसाईको", १२-५-१९२६।