५७०. पत्र: जी॰ एम॰ नलावड़ेको
साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६
आपकी गस्ती-चिट्ठीके जवाबमें इस पत्रके साथ मैं अपना संदेश भेज रहा हूँ।
हृदयसे आपका,
श्रीयुत जी॰ एम॰ नलावड़े
'संग्राम' कार्यालय
शाँवर पेठ
पूना सिटी
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५७३ आर॰) की नकलसे।
५७१. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको
साबरमती आश्रम
रविवार, २३ मई, १९२६
आपका पत्र मिला था। खादीके विषयमें जो लोन आपने देनेकी प्रतिज्ञा की है इस बारेमें आपके खतकी नक्कल जमनालालजीको भेज दी है।
साबरमती समझौतेके बारेमें मैं तो स्तब्ध हो गया। अबतक मैं कुछ समझ सकता नहीं हूँ। हिंदुमुसलमानके बारेमें मैं सब समझ सकता हूं, परंतु लाचार बन गया हूं। क्योंकि मैं आत्मविश्वासको नहीं छोड़ सकता हूँ, इस लिये निराश नहीं होता। इतना तो समझता हूं कि जिस ढंगसे आज हिंदुधर्मकी रक्षा करनेकी कोशीश होती है उस ढंगसे रक्षा नहीं हो सकती है। परंतु मैं तो 'निर्बलके बल राम' वस्तुको संपूर्णतया मानता हूँ। इसलिए निश्चित हो बैठा हूं।
आपका,
मोहनदास
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला