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५६८. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

आपका पत्र मिला। आखिरकार हेमप्रभा देवीने भी एक लम्बा खत लिख भेजा है। मुझे तो लगता है, वे वहाँ बहुत कठिन परिस्थितियोंमें रह रही हैं। अपने स्वास्थ्यको क्षति पहुँचाकर उनका वहाँ रहना ठीक नहीं है। अगर वहाँकी जलवायु ऐसी है, जिससे मलेरिया होने का डर रहता है तो शिल्पशाला (वर्कशाप) बनवानेका कोई और उपाय सोचिए। इस कामके लिए उनको वहाँ रखकर उन्हें मलेरियाका पहला शिकार क्यों बनाया जाये? खुद आपका भी स्वास्थ्य ठीक रहना चाहिए। हेमप्रभा देवीका खयाल है कि इसका ध्यान नहीं रखा जा रहा है।

निर्मलकुमारने अच्छा किया है। उसे पत्र लिख रहा हूँ। अगर आप लालगोलासे कुछ प्राप्त कर सकें तो यह खासी मदद होगी। मुझे बताया गया है कि छोटालाल अब आपके पास नहीं है। मैं नहीं समझता कि वह वहाँ ज्यादा दिन रहेगा।

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५७०) की माइक्रोफिल्मसे।

५६९. पत्र: कोंडीपार्थी पन्नियाको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६

प्रिय पन्निया,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें अपना प्रार्थनापत्र सीधा मेरे पास नहीं भेजना चाहिए था। इससे तो काममें बहुत देर हो जाती है। खैर, अब जब तुमने उसे भेज ही दिया है तो यथासमय उसपर कार्रवाई की जायेगी।

तुम खुद आजकल कहाँ रह रहे हो? क्या अब भी पिनाकिनी आश्रमसे तुम्हारा कोई सम्बन्ध है? यदि नहीं, तो तुम क्या कर रहे हो? बुनाईशालाकी देख-रेख अब कौन करेगा? और तुम एक सालमें ही बुनाई सिखा दोगे ऐसा सोचनेका आधार क्या है? एक सालके बाद क्या करोगे?

श्रीयुत कोंडीपार्थी पत्निया
द्वारा——मदम वेंकैया चेट्टी गारू, करनूल

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ १९५७१) की माइक्रोफिल्मसे।