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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गवर्नरके साथ हुई अपनी बातचीतका वर्णन आपसे करना मैं जरूरी नहीं समझता। एक वाक्यमें इतना ही जान लीजिए कि मैंने चरखेसे बातचीत शुरू की और चरखेपर ही समाप्त भी की। और मैं तो एक अच्छा विज्ञापनकर्त्ता भी हूँ, सो दूसरी मुलाकातके समय मैं अपने साथ मीठूबाईकी खादीकी साड़ी भी लेता गया ताकि गवर्नर महोदय और उनकी पत्नीको आन्ध्रकी खादीकी सम्भावनाएँ दिखा सकूँ। चरखेके बारेमें मेरे पास कहनेको जो-कुछ भी है, गवर्नर महोदयने वह सब बहुत ध्यानसे सुना, लेकिन अगर आप पूछे कि उस सबका उनपर असर कितना हुआ तो इसका जवाब मैं नहीं दे सकता।

मैं मथुरादास, काका, देवदास और बहराम खम्भातासे मिला। वैसे तो इस यात्रामें भाग-दौड़ बहुत करनी पड़ी, लेकिन वह व्यर्थ नहीं गई और कुछ नहीं तो उससे इतना लाभ तो हुआ ही कि मैं इन रोगियोंको देख सका। देवदास बिलकुल ठीक है और जैसा वह अस्पतालमें दाखिल होते समय दीखता था, उसकी अपेक्षा बहुत स्वस्थ दीखता है। काकाके स्वास्थ्यमें काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी और सुधारकी जरूरत है। मथुरादास पहलेसे अच्छा है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वह रोगके चंगुलसे पूरी तरह निकल गया है। ऐसा नहीं है कि उसपर कोई आसन्न खतरा हो, लेकिन उसके लिए अच्छा यही होगा कि वह विशेष सावधानी बरते। बहराम खम्भाताकी आँतमें कोई ग्रन्थि पड़ गई है। आप शायद उन्हें नहीं जानते हों। वह एक निष्ठावान्, आत्मत्यागी और मौन कार्यकर्त्ता हैं और जान-बूझकर अपनेको सबसे पीछे रखते हैं। उनकी पत्नी भी उतनी ही अच्छी है——सीताकी अवतार ही समझिए।

एक खबर है, जिसे सुननेसे अगर आपको आनन्द और स्फूर्तिका अनुभव हो और आप अधिक स्वस्थ हो जायें तो सुनिए——वह खबर यह है कि अब लगभग निश्चित-सा लग रहा है कि मैं फिनलैंड नहीं जाऊँगा, क्योंकि जान पड़ता है, पॉलने सबकुछ गड़बड़ कर दिया है। बहरहाल, वे बहुत उलझनमें पड़े हुए हैं और उनकी समझमें नहीं आ रहा है कि वे मेरी या मेरी यात्राकी व्यवस्था कैसे करें। कहनेको तो कह रहे हैं कि बकरीको दोहनेका काम वे कर देंगे, लेकिन जाहिर है, उनके मनमें यही है कि यह काम तो हर रोज वही लोग कर दिया करेंगे जो मेरे साथ जायेंगे। लेकिन, अधिकसे-अधिक अगले पखवाड़े भरमें अन्तिम निर्णय हो जायेगा।

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५६८) की फोटो-नकलसे।