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पत्र: च॰ राजगोपालाचारीको

परिणामस्वरूप हम विदेशी वस्त्रके बहिष्कारका कार्य सम्पन्न कर देंगे। लेकिन वह होनेको नहीं था और अब हमें जनताके बीच चरखेका वातावरण तैयार करना है। मैं नहीं समझता कि चरखेको घर-घर प्रवेश करनेमें उतना समय लगेगा, जितना तुम सोचते हो, लेकिन अगर लगे भी तो अहिंसाकी भावनाके प्रचारकी दृष्टिसे मैं चरखेके अलावा किसी अन्य साधन या प्रवृत्तिकी बात सोच ही नहीं सकता हूँ।

मुझे लगता है कि तुम मुझसे अपने प्रश्नके सार्वजनिक उत्तरकी आशा रखते हो, क्या तुम सचमुच सार्वजनिक उत्तर चाहते हो? मगर मुझे तो तुम्हारे उठाये प्रश्नपर दूसरोंके साथ बातचीत करने या 'यंग इंडिया' में उसपर कुछ विचार करनेकी अपेक्षा तुम्हें ही अपनी स्थितिका औचित्य समझानेकी ज्यादा फिक्र है।

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीयुत इन्द्र विद्यालंकार
सरगोधा

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५६७ ) की फोटो - नकलसे ।

५६७. पत्र: च॰ राजगोपालाचारीको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६

सन्तानम्ने मेरे पत्रका जो उत्तर दिया है, साथमें भेज रहा हूँ। अब मैं उसे और समझाने-बुझानेकी कोशिश नहीं करूँगा, लेकिन मैं उसके प्रयत्नोंकी पूर्ण सफलताकी कामना करता हूँ। उसका पत्र बड़ा अच्छा है।

कल बम्बईमें मैंने जमनालालजीको लिखा आपका पत्र पढ़ा। आशा है, अबतक आप प्लूरिसीसे छुटकारा पा चुके होंगे। यह ऐसा रोग है जिसे पर्याप्त सावधानी बरतने पर आसानीसे ठीक किया जा सकता है। आप अपना दौरा कहाँसे शुरू करनेकी सोचते हैं? अगर दक्षिणी प्रान्तसे शुरू करना हो और दौरा शुरू करनेसे पहले आपका इरादा अहमदाबाद आनेका नहीं हो तो जमनालालजीका कहना है कि आप जहाँ-कहींसे चाहें, वे आपके साथ हो लेंगे। लेकिन, अगर आप ऐसा सोचते हों कि फिलहाल दक्षिणी प्रान्तको रहने ही दिया जाये तो फिर कोई दूसरा प्रान्त चुना जा सकता है। मगर तब दूसरे किस प्रान्तसे दौरा शुरू किया जाये, इसका निर्णय यहाँ किया जायेगा। अगर आपको लगे कि आपके पत्रके यहाँ पहुँचनेमें तो बहुत देर हो जायेगी तो आप अपना इरादा तार द्वारा सूचित करें। जबतक आपकी बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हो जाये तबतक आप सिर्फ इस आशासे कि अधिक यात्रा करनेसे हमारे उद्देश्यका कुछ-न-कुछ हित होगा ही, किसी भी दशामें दौरा शुरू न करें। प्लूरिसीके रोगीके लिए वर्षा-कालमें यात्रा करना खतरनाक होता है।

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