पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५४८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  है। डॉ॰ बेसेंटने भारतके लिए वैसा काम किया है, जैसा काम जन्मतः भारतीय होनेवालोंमें भी बहुत कम लोगोंने किया है।

हृदयसे आपका,

एम॰ आर॰ हवेलीवाला


गोपीपुरा


सूरत

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५६६) की फोटो-नकलसे।

५६६. पत्र: इन्द्र विद्यालंकारको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६

प्रिय इन्द्र,

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने अंग्रेजीमें लिखना पसन्द किया, सो मैं जवाब भी अंग्रेजीमें ही दे रहा हूँ। मगर तुमने अंग्रेजीमें लिखा क्यों? मैंने जो वादा किया था कि १९२१ में स्वराज्य मिल जायेगा, वह एक शर्तके[१] साथ किया था। शर्त थी जन-साधारण द्वारा अहिंसात्मक असहयोगका पूर्णतः स्वीकार करना। वीरमगाँव, बम्बई[२] और चौरी-चौरामें [३] उन शर्तोंको जन-साधारणने नहीं, बल्कि कांग्रेसके जाने-माने अनुयायियोंने तोड़ा था। जिसे वर्तमान परिस्थितिका राजनीतिक पहलू कहा जाता है, उसके बारेमें मैं आज अगर चुप हूँ तो इसलिए चुप हूँ कि अपने मौनके द्वारा मैं लोगोंको अहिंसाका सन्देश दे रहा हूँ। राष्ट्रका मानस आज जिन अनेक विवादग्रस्त प्रश्नोंसे परेशान हो रहा है, उनके सम्बन्धमें कामकी कोई बात कहनेकी स्थितिमें मैं नहीं हूँ और अगर मैं मौके-बेमौके बार-बार चरखेकी ही बात करता रहता हूँ तो उसका भी कारण यही है। मेरे लेखे चरखा अहिंसाका मूर्तरूप है, क्योंकि अहिंसाका मतलब कर्म——सच्चे अर्थमें कर्म——है, जबकि हिंसाका मतलब दुष्कर्म या कर्महीनता है।[४] अगर लोग अहिंसात्मक तरीकेसे स्वराज्य चाहते हों तब तो उसका उपाय विदेशी कपड़ोंका पूर्ण बहिष्कार और चरखे तथा उसके सारे फलितार्थीको अंगीकार करना ही है। मुझे आशा थी कि स्वराज्य प्राप्तिके लिए निर्धारित अवधि अर्थात् १९२१के वर्षमें जनताकी चरखेकी भावना एकाएक और व्यापक रूपसे फूट पड़ेगी और उसके

  1. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ २९१-९५।
  2. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ४८५-८९।
  3. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ३७०-७१।
  4. यहाँ साधन-सूत्रमें कुछ भूल-सी लगती है, जिसे सुधारकर अनुवाद किया गया है।