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५५९. पत्र: एडविन एम॰ स्टैंडिंगको

साबरमती
२३ मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका दूसरा पत्र मिला। आपके पहले पत्रके बारेमें कुछ नहीं लिख रहा हूँ, क्योंकि अभीतक उसपर गौर करनेका समय ही नहीं निकाल पाया हूँ। एक-दो दिनोंमें ऐसा कर पाऊँगा। आप इतनेके लिए तो आश्वस्त हो सकते हैं कि अपने विचार लिखनेमें आपने जितनी मेहनत की है, उसपर जितना ध्यान देना उचित है, अवश्य दूँगा।

आपने जो पुस्तक और सुन्दर फोटो भेजा है, उसके लिए धन्यवाद। आपने मुझेसे भी फोटो माँगे हैं, लेकिन मेरे पास अभी कोई फोटो नहीं हैं अतः मैं कहींसे खोज-ढूँढ़कर ही दे सकूँगा। बल्कि अब तो मुझे यह भी याद नहीं रहा कि आपने कौन-से फोटो माँगे हैं। फिर लिख भेजने का कष्ट करें तो अच्छा हो।

हाँ, मोटा बहन अपने काममें हमेशा की तरह मनोयोगपूर्वक लगी हुई है और उनका भी काम बढ़ रहा है। वे प्राणपणसे यह काम कर रही हैं और यह उस खमीर की तरह है...।[१] अभी वे दार्जिलिंगमें श्री और श्रीमती अम्बालालके साथ हैं। वे जाना नहीं चाहती थीं। लेकिन जाना जरूरी था।

अब तो मेरा मन कहता है कि मैं फिनलैंड नहीं जाऊँगा। लेकिन अगले पखवाड़ेमें निश्चित रूपसे पता चल जायेगा। अगर गया तो जुलाईके प्रारम्भमें यहाँसे प्रस्थान करूँगा।

हृदयसे आपका,

श्री एडविन एम॰ स्टैंडिंग


सेफ्टन प्लेस
अरूंडेल
ससेक्स


(इंग्लैंड)

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४७४) की फोटो-नकलसे।

  1. साधन-सूत्र में यहाँ कुछ भूल दिखाई देती है, जिससे वाक्यके अगले अंशका अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता।