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५५८. पत्र: आ॰ टे॰ गिडवानीको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६

प्रिय गिडवानी,

आपका पोस्ट कार्ड मिला। समझमें नहीं आता कि आबूके पतेपर भेजा मेरा पत्र आपको क्यों नहीं मिला। पत्र...[१]ले गये थे। लेकिन अब उससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। मैं जानना चाहूँगा कि आपने कानोदरमें क्या कुछ देखा। मुझे मालूम है कि वहाँ बुनाईका काम खूब होता है। लेकिन, मशीनसे काते गये सूतको ही काममें लाया जाता है——फिर चाहे वह स्वदेशी हो या विदेशी।

मैं महाबलेश्वरसे कल ही आया हूँ। चरखेके अलावा और किसी विषयपर गवर्नरसे मेरी कोई बात नहीं हुई।

साथमें लाला शंकरलालका लिखा पत्र भेज रहा हूँ। विद्यालयमें सुधार और विस्तारकी काफी गुंजाइश दिखाई देती है। जब कागज-पत्र आपके पास पहुँच जायें तो पहले हम दोनोंको मिल-बैठकर इस विषयपर विचार कर लेना चाहिए; उसके बाद ही आप वहाँ जाकर कोई योजना बनायें, मुझे यह तो मालूम था कि इस संस्थाकी आमदनी अच्छी खासी है, लेकिन यह नहीं मालूम था कि संस्थाको शंकरलालने अपनी चिट्ठीमें जितनी बड़ी बताया है, यह उतनी बड़ी है। अब मैं आपसे यह आशा रखूँगा कि आप इस पुरानी संस्थाको पूरी तरह सफल बनायेंगे।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आ॰ टे॰ गिडवानी।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११२६३) की माइकोफिल्मसे।

  1. यहाँ साधन-सूत्रमें ही स्थान रिक्त है।