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५५७. पत्र: अब्बास तैयबजीको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं जानता था कि आप इस आघातको—— दुनियावी दृष्टिकोणसे तो यह अथाह ही है——बहादुरीसे झेल लेंगे। मैं तो यहीं मानता हूँ कि ऐसा कहना बिलकुल सही होगा कि खुदाको शम्स तैयबजीके इस शरीरसे, जो अब कब्रमें शान्तिसे पड़ा हुआ है और तेजीसे मिट्टीमें मिलता जा रहा है, आगे कोई काम नहीं लेना था। अगर खुदामें आपका विश्वास न होता, अगर आप यह न मानते होते कि शरीरके नष्ट हो जानेपर भी आत्माका अस्तित्व बना रहता है तो इस घटनापर आपका आँसू न बहाना निष्ठुरता माना जाता। लेकिन चूँकि मैं जानता हूँ कि आत्माकी अमरतामें आपका विश्वास है और आप मानते हैं कि खुदा सृष्टिमें सब जगह मौजूद है, इसलिए आपने जो अपने ऊपर दुःखको हावी नहीं होने दिया उससे यही प्रकट होता है कि आपने खुदा की मर्जीको शान्त मनसे सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया और मृत्युके असली रूपको पहचान लिया।

जमनालालजी अब भी बम्बईमें ही हैं। आप चाहें तो खुद ही उनसे मिल सकते हैं। मैं उन्हें पत्र लिख दूँगा। क्या आपको मालूम है कि देवदास 'सर हरिकिसन दास अस्पताल' में है?

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीयुत अब्बास तैयबजी


मार्फत——एम॰ बी॰ तैयबजी
फ्रेंच रोड, चौपाटी


बम्बई

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ९५५५) की फोटो-नकलसे।