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पत्र: के॰ टी॰ पॉलको

  आपको और मुझे इस चीजको बिलकुल तटस्थ भावसे देखना चाहिए और यह काम उसी हालतमें करना चाहिए जब हमें यथासम्भव अधिकसे-अधिक स्पष्ट रूपसे दिखाई दे कि ईश्वरकी यही इच्छा है। सो अगर इस सम्बन्धमें किन्हीं परिस्थितियोंकी बाध्यताकी कोई बात हो तो आप अपने कदम वापस ले लें और अपने मनसे निमन्त्रणका खयाल निकाल दें——ऐसा समझें, मानो कोई निमन्त्रण कभी भेजा ही नहीं गया।

आपने पैसेके सवालकी चर्चा की है लेकिन, इसकी चिन्ता तो केन्द्रीय समितिको होनी चाहिए, मुझे और आपको नहीं। हाँ, अगर आपसे खर्च जुटानेकी अपेक्षा की जाती हो तो बात दूसरी है। अगर जरूरी लगता तो जितने पैसेकी आवश्यकता होती, मैं एक मित्रसे खुशी-खुशी माँग लेता। लेकिन इसे मैं सिद्धान्ततः गलत मानता हूँ, क्योंकि खर्च तो उन्हींको उठाना चाहिए जो मुझे निमन्त्रित करते हैं।

फिर, जहाँतक मेरा सम्बन्ध है, मैं तृतीय श्रेणीमें भी उतने ही आरामसे यात्रा कर सकता हूँ जितना कि प्रथम श्रेणीमें। अगर स्थान साफ-सुथरा हो, पर्याप्त एकान्त मिल सके और खराब मौसमसे बचावका प्रबन्ध हो तो मैं सैलूनके बजाय डेकमें ही जाना पसन्द करूँगा। दक्षिण आफ्रिकासे लौटते समय, मैंने केप टाउनसे लन्दन तकका तीसरे दर्जेका टिकट लिया और मैंने देखा कि उससे मुझे कोई असुविधा नहीं हुई। डेकमें तो स्थान ही नहीं मिल सका था। लेकिन इस मामलेमें तो मैं समझता हूँ कि दिखावेका खयाल करके सैलूनके अलावा और किसी दर्जेकी बात नहीं सोची जायेगी। तथापि अगर केन्द्रीय समिति मुझे तीसरे दर्जेमें ही ले जाना तय करती है तो मैं इसमें किसी तरहका अपमान नहीं मानूँगा, लेकिन सब-कुछ या तो केन्द्रीय समिति करे या फिर वे लोग जिनका कि निमन्त्रण-पत्र भेजनेमें हाथ है। इसमें मैं कुछ नहीं बोलना चाहूँगा और न कोई सुझाव ही देना चाहूँगा।

जहाँतक बकरीके दूधका सवाल है, मैं यह नहीं मानूँगा कि बकरियोंके खाने-रहनेका इन्तजाम करने या उनसे दूध निकालनेकी जिम्मेदारी आपपर या मेरे किसी साथीपर है। यह काम जहाज कम्पनीपर छोड़ देना चाहिए। प्रबन्धक लोग जैसी व्यवस्था करना चाहें, करें। यात्रियोंके लिए जहाजपर इन चीजोंकी व्यवस्था करना कोई आसान काम नहीं है। मान लीजिए, तूफान आता है या बकरियाँ मर जाती हैं तो कोई क्या करेगा? ऐसी बातोंको बराबर जहाजके मालिकोंपर छोड़ देना ही सबसे अच्छा होता है। वे जानते हैं कि उनका इन्तजाम कैसे करना चाहिए।

मेरे साथ दो व्यक्ति होंगे——महादेव देसाई और मेरा सबसे छोटा लड़का देवदास। पहले तो एकको ही साथ ले जानेका इरादा था, लेकिन फिर अपने शरीरकी मौजूदा हालतको देखते हुए और इस बातको ध्यानमें रखते हुए कि चाहे कहीं ठहरा हुआ होऊँ या यात्रापर होऊँ, मुझे कुछ-एक सार्वजनिक कार्य तो हर स्थितिमें करने ही पड़ते हैं, लगता है कि ये दोनों सहायक मेरे लिए जरूरी हैं। अगर सहायकके रूपमें आप भी मिल जायें तो अपना सौभाग्य मानूँगा, लेकिन मैं समझता हूँ, आप महादेव या देवदासके स्थानकी पूर्ति तो नहीं ही कर सकते। वे किस दर्जेमें यात्रा