पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५३८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  यह देख रहा हूँ कि सब संस्थाओंको एक करना और उन्हें एक ही नियमके अधीन लाना कितना कठिन है। जितनी भी संस्थाओंके नाम और पते मिले, उनसे उनके कामकी जानकारी माँगी थी; परन्तु वह भी बहुत ही कम संस्थाओंने भेजी है। यह नहीं कि वे भेजना नहीं चाहती; परन्तु आलस्य, उपेक्षा अथवा लज्जाके कारण नहीं भेजती। उन्हें लज्जा अपनी अव्यवस्थाके कारण मालूम होती है, क्योंकि मैंने ऐसी संस्थाएँ देखी हैं जिनमें न व्यवस्था ठीक थी और न हिसाब ठीक था। कुछ संस्थाओंमें तो व्यवस्थापक ही इतने अनपढ़ लोग होते हैं कि उनमें सब तथ्योंको इकट्ठा करके भेजनेकी योग्यता नहीं होती। हिन्दुस्तानमें १,५०० गोशालाएँ बताई जाती हैं। यदि ये गोशालाएँ सुव्यवस्थित होकर डेरियोंमें बदल जायें तो इस देशमें गोरक्षाका प्रश्न बहुत सरल हो जाये; मुझे इसमें किसी भी प्रकारका सन्देह नहीं। परन्तु यह कार्य हो कैसे? बिल्लीके गलेमें घंटी कौन बाँधे? मैं तो इतना ही कहता हूँ कि सभी संस्थाओंको पुनरुज्जीवित करनेकी आवश्यकता है। ये जबतक आदर्श दुग्धालय और चर्मालय नहीं बनतीं तबतक इनके नियम बनाने भी कठिन हैं। अ॰ भा॰ गोरक्षा मण्डलने इस कार्यका त्याग नहीं किया। दुग्धालयकी योजना सर हेरॉल्ड मैनसे बनवानेका प्रयत्न किया जा रहा है और चर्मालयकी योजना भी तैयार कराई जा रही है। गोरक्षाकी दृष्टिसे ऐसे प्रयोग करनेका कार्य नया है; इसलिए ये योजनाएँ शीघ्र तैयार नहीं की जा सकतीं। भाई वालजी देसाई[१]और मि॰ गेलेटीके लेख इस बातको सिद्ध कर रहे हैं कि ढोरोंकी हिफाजत करनेमें भारतवर्ष सबसे गया-बीता देश है। तब हमें यहाँ दुग्धालय और चर्मालयके विशेषज्ञ शीघ्र कैसे प्राप्त हो सकते हैं?

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-५-१९२६

५५४. पत्र: के॰ टी॰ पॉलको

साबरमती आश्रम
२३ मई, १९२६[२]

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। उसका उत्तर तार द्वारा नहीं दिया, क्योंकि पत्र ऐसा है जिसका उत्तर छोटे-से तारमें नहीं दिया जा सकता। आपके पत्रसे मुझे लगता है कि मेरी इस प्रस्तावित यात्रासे आपको बड़ी परेशानी और चिन्ता हो रही है। मगर इसपर चिन्ता नहीं कीजिए। आप किसी भी तरह ऐसा न मानें कि चूँकि निमन्त्रण आपकी मार्फत भेजा गया है, इसलिए आपको मेरा जाना पक्का ही कर लेना है।

  1. देखिए यंग इंडिया, १४-१-१९२६ से ८-७-१९२६।
  2. सम्भवतः यह पत्र शनिवार ता. २२ मईको लिखा गया था; देखिए अगला शीर्षक।