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गो-रक्षा

  यदि कोई ऐसी वनस्पति मिल सके जिसमें घी जितने ही गुण हों तो मैं न केवल उसका प्रयोग करूँगा बल्कि उसका प्रचार भी करूँगा। घीके प्रयोगमें मुझे दोष दिखाई देते हैं। किन्तु घीके गुणोंकी मैं अवहेलना नहीं कर सकता। अबतक कोई ऐसा पदार्थ वनस्पतियोंसे नहीं निकाला जा सका जो घीका स्थान ले सके। इसलिए जो चीज वैजीटेबल घीके नामपर बेची जा रही है, वह दो कारणोंसे त्याज्य है: एक तो यह कि उक्त वस्तु घी नहीं है और दूसरा यह कि उसमें घीके गुण नहीं हैं। तीसरी हानि यह है कि जहाँ हम आजकल अनेक विदेशी वस्तुओंका प्रयोग करते हैं वहाँ अपने अज्ञानवश एक और विदेशी पदार्थ प्रयोग करने लग गए जिससे हम नुकसान उठा रहे हैं। अतः वनस्पति घीका प्रयोग करनेवाले हर व्यक्तिको सावधान हो जाना चाहिए। इस घीका प्रयोग बन्द कर देना चाहिए।

ऊँच-नीच

एक भाई लिखते हैं:[१]

यह कठिन प्रश्न है। किन्तु अहिंसाकी दृष्टिसे तो उसका एक ही उत्तर हो सकता है और वह यह कि जो व्यक्ति अपने स्वार्थकी खातिर छोटे जीवोंको कष्ट पहुँचाता है वह स्वयं गिर जाता है। मनुष्य नम्रता और उच्चताका सम्मिश्रण है और उसकी उच्चता उसकी नम्रतामें निहित है। यदि उसमें नम्र बननेकी शक्ति न हो तो उसे ऊँचा उठा हुआ नहीं कहा जा सकता। ऐसी हालतमें पुरुषार्थकी भी गुंजाइश नहीं रहती। इसीलिए कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने कारण किसी भी प्राणीको दुःख नहीं देता और जीवमात्रके लिए स्वयं दुःख उठानेको तैयार रहता है, वही आत्म-दर्शन करने योग्य बन सकता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-५-१९२६

५५३. गो-रक्षा

भाई जीवराज नेणशी लिखते हैं:[२]

यह सुझाव कोई नया नहीं है। अ॰ भा॰ गोरक्षा मण्डल इसी उद्देश्यसे स्थापित किया गया है। परन्तु ज्यों-ज्यों मुझे इस कार्यका अनुभव हो रहा है त्यों-त्यों मैं

  1. पत्र-लेखकने पूछा था कि मनुष्यको अन्य सभी प्राणियोंसे ऊँचा माना जाता है, किन्तु वह अपने स्वार्थकी खातिर अन्य प्राणियोंको दुःख देता है। क्या उसे ऐसी स्थितिमें भी अन्य प्राणियोंसे ऊँचा माना जा सकता है?
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें पत्र-लेखकने सुझाव दिया था कि देशमें दुर्बल पशुओंके रक्षार्थ जो विभिन्न संस्थाएँ चल रही हैं, उनको मिलाकर एक अखिल भारतीय संस्था बना ली जाये और उसके द्वारा एक ऐसी योजना बनाई जाये जिससे उन संस्थाओंमें स्वस्थ पशु रखे जायें और उनसे लोगोंको शुद्ध दूध उपलब्ध किया जाये एवं इस प्रकार जो आय हो उससे दुर्बल पशुओं की सार-सँभाल की जाये।