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५४९. खादी-सम्बन्धी चित्र-तालिका

नीचे दी गई चित्र-तालिकाओं[१] (ग्राफ्स) से १९२४-२५ से १९२५-२६ में अक्तूबरसे मार्च तकके महीनोंमें तमिलनाडमें हुई खादीकी प्रगतिपर तुलनात्मक दृष्टिसे प्रकाश पड़ता है। निश्चय ही पाठकोंको ये आँकड़े दिलचस्प लगेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०-५-१९२६

५५०. पत्र: जयसुखलालको

साबरमती आश्रम
शनिवार, २२ मई, १९२६

चि॰ जयसुखलाल,

मैं गवर्नरसे मिलनेके लिए महाबलेश्वर गया था। वहाँसे आज वापस आया हूँ। तुम्हारा पत्र मुझे महाबलेश्वरमें ही मिला था। गवर्नरके साथ चरखेकी ही बात होती रही, ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा। देवदासकी तबीयत अच्छी है। दो-चार दिनोंमें अस्पतालसे वापस आ जायेगा। कुसुम और धीरु अभी जयाके पास ही हैं। उनसे भी मिला था। वे २५ तारीखको बम्बई छोड़ेंगे। देवलालीमें मथुरादासको भी देख आया, उसकी तबीयत सामान्य कही जा सकती है। प्रभुदास और विजयाको भी वहीं मिला था। प्रभुदासकी तबीयत वहाँ ठीक रहती जान पड़ती है। किसी वैद्यकी दवा लेता है।

तुम्हारे पास जो महीन सूत है, क्या वह पक्का भी है? यदि वह पक्का हो तो क्या वह वांझा लोगोंसे बनवाया जा सकता है? बगसरामें तो ये लोग बहुत महीन सुत बुनते हैं। वे पहले हमारी मिलके सूतको हाथ नहीं लगाते थे। क्या तुम जानते हो कि उनके साथ बन्दोबस्त करके ऐसा सुत हमने [१९] १५ में बनवाया था? अमरेलीमें मारवाड़ी मास्टरका पिता है; कदाचित् वह भी महीन सूत बुन सकेगा। इससे पहली बात तो यह जानने की है कि सूत पक्का है अथवा नहीं। बुनाईका काम यहाँ हो सकता है या नहीं, इस बारेमें विचारकर देखूँगा। खादीके टुकड़ेके बारेमें गारियाधारमें क्या हुआ, वह तो मैं नहीं जानता। चाहे जो हुआ हो, लेकिन मेरा तो यह खयाल है कि यदि तुम खादीके टुकड़े इकट्ठे कर सको तो अच्छा है। जो लोग खादीके टुकड़े देनेमें आनाकानी करते हों क्या उन्हें यह नहीं समझाया जा सकता कि उनमें ताना और बाना हाथका ही है अथवा नहीं, इसकी परीक्षा किसी

  1. यहाँ नहीं दी जा रही हैं।