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पत्र: मोतीलाल नेहरूको

  यदि रुईकी कीमत अलग कर दें तो पिंजाई, कताई और बुनाई मिलकर रुईकी कीमतसे सवाई होती है। इस ओर ध्यान आकर्षित करनेका उद्देश्य यह है कि यदि हमारे सभी कपड़ोंमें रुई देशी हो तो रुईकी कीमत किसानोंके घरमें जायेगी ही, खादीके खरीददार बाकी खर्चका सारा रुपया भी अपने मजदूर भाइयोंकी जेबमें ही डालेंगे। किन्तु विलायती कपड़े खरीदनेवाले उसे बाहर भेज देते हैं और मिलका कपड़ा खरीदने वाले मुख्यतः धनिक वर्गके घरमें श्रीवृद्धि करते हैं। उसमें से मजदूरको गजके पीछे शायद ही एक पैसा मिलता हो।

अब पाठक समझ सकेंगे कि अब्बास साहब खादीकी फेरी लगानेके लिए काठियावाड़में इस सख्त गर्मीमें क्यों निकले हैं? और काठियावाड़ियोंको क्यों उनसे यह खादी लेनी चाहिए। जो कातनेवाली स्त्रियाँ सूत कात रही हैं उन्हें कोई दूसरी मदद नहीं मिलती, और उनके पास कोई धन्धा नहीं है। उन्हें रोज दो-चार पैसे मिलें यह बहुत बड़ी मदद है। इसलिए खादी खरीदनेवाले लोग यदि इन बहनोंसे और साथमें गरीब बुनकरों तथा गरीब पिंजारोंसे इस तरह जो-कुछ थोड़ा भी काम लेते हैं तो उनकी मदद करते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १६-५-१९२६

५४१. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

महाबलेश्वर
१६ मई, १९२६

प्रिय मोतीलालजी,

देवदासके बारेमें आपका तार मिला था। डॉ॰ दलालको अपेन्डिसाइटिसका सन्देह हुआ और उन्होंने ऑपरेशन करवानेकी सलाह दी। मैंने बिना हिचक उनकी सलाह मान ली और इसलिए जमनालालजी और महादेवकी मौजूदगीमें ऑपरेशन कर दिया गया। मैं वहाँ मौजूद नहीं था, लेकिन महाबलेश्वर और बीमार पड़े मथुरादासको देखने देवलाली जाते समय गुरुवारको मैं उससे मिला। देवदासकी हालत बिलकुल ठीक चल रही है और शायद इसी २५ तारीखतक उसे छुट्टी दे दी जायेगी। तनिक भी चिन्ता की बात नहीं है। मैं यह पत्र महाबलेश्वरमें लिखवा रहा हूँ। यहाँ मैं आज तीसरे पहर लगभग ५ बजे पहुँचा। मंगलवारको[१] गवर्नरसे भेंट करनी है।

विट्ठलभाईके पत्रकी[२] एक नकल साथमें भेज रहा हूँ। पत्र लिखनेके बाद वे आश्रम आये थे। [विधान सभाके] अध्यक्षके वेतनके सम्बन्धमें मेरी और आपकी जो बातचीत हुई थी, उसके विषयमें मैंने उन्हें बता दिया। उन्होंने मुझे बताया कि

  1. १८ मई, १९२६; १९ तारीखको दूसरी भेंट होना तय हुआ।
  2. देखिए परिशिष्ट १।