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अज्ञानका जाला

इन कैदियोंको छुड़ानेका प्रयत्न तनिक भी नहीं करना चाहते। यहाँ तो चरखेका अर्थ विदेशी कपड़ेका बहिष्कार है। यह शक्ति कितनी बड़ी है और उसके बिना किसी दूसरी शक्तिका विकास करनेमें हम असमर्थ हैं यह हम आगेके मुद्देकी परीक्षा करते समय देखेंगे और इसलिए मैं भाले-बरछी चलानेमें समर्थ वीर सिपाहीको भी, जो चरखा देना चाहता हूँ वह मेरे पागलपनका लक्षण नहीं है; बल्कि मेरे ज्ञानका लक्षण है और वह ज्ञान किताबोंसे उपलब्ध ज्ञान नहीं है बल्कि यह अनुभवका प्रसाद है।

(४) हिन्दुस्तान साठ करोड़ रुपयेका कपड़ा न खरीदे तो उससे ब्रिटेनका क्या बिगड़ेगा, यह प्रश्न यहाँ असंगत है। हमें इतना ही सोचना है कि उससे हमारा क्या लाभ होगा। यदि हम खादीको अपनाकर साठ करोड़ रुपयेका विदेशी कपड़ा खरीदना बन्द कर देंगे तो उसका अर्थ यह होगा कि उतने रुपये तीस करोड़ हिन्दु-स्तानियोंके घरोंमें बचेंगे तथा उससे उनकी इतनी आमदनी बढ़ेगी। उससे हिन्दुस्तानका यह उद्योग बढ़ जायेगा और उससे इतने रुपये कमाये जा सकेंगे और खादीके द्वारा इतने रुपये बचानेका मतलब यह होगा कि करोड़ों लोगोंका संगठन होगा, करोड़ों लोगोंकी शक्तिका संग्रह होगा और करोड़ों देश-सेवक सेवा-कार्यमें सँलग्न हो जायेंगे। ऐसे महान कार्यको अच्छी तरह पार उतारनेके मानी हैं, हम लोगोंको अपनी शक्तिका पूरा-पूरा ज्ञान होना। हमें कोई बड़ा काम करते हुए जो अनेक बारीक गुत्थियाँ पेश आती हैं, जबतक हमें उन्हें सुलझानेका ज्ञान न होगा, जबतक हम एक-एक पाईका हिसाब रखना न सीखेंगे, गाँवोंमें रहना न सीखेंगे, मार्गमें आनेवाली अनेक बाधाओंको दूर न कर सकेंगे और अनेक पहाड़ोंको काटकर मार्ग न बना सकेंगे तबतक यह होना असम्भव है। चरखा और खादी लो इस शक्तिके उत्पादनमें निमित्तमात्र है। जबतक हम थोड़ा-सा धैर्य रखकर चरखे और खादीके रहस्योंको और उसके फलितार्थको कल्पनाशक्तिका उपयोग करके समझेंगे नहीं तबतक यदि चरखेके प्रति हमारी अरुचि हो तो यह समझमें आने योग्य है। परन्तु जब हम इस रहस्यको समझ जायेंगे तब चरखा हमारे हाथसे कभी छूटेगा नहीं। अंग्रेज बहुत चालाक हैं, अंग्रेज अधिकारी चतुर और समझदार हैं और मैं यह बात जानता हूँ इसीलिए तो मैंने लोगोंके सामने चरखा प्रस्तुत किया है। हम अंग्रेजोंको अपने वाक्चातुर्यसे ठग न सकेंगे, समाचापत्रोंमें अपनी कलमकी शक्ति दिखाकर हरा न सकेंगे। वे हमारी धमकियोंके अभ्यस्त हो गये हैं। हमारा बाहुबल उनके हवाई जहाजोंसे गिरनेवाले गोलोंके सामने कुछ भी नहीं है। परन्तु वे लोग धैर्य, उद्यम, निश्चय और योजनाशक्ति-जैसे गुणों को समझते हैं और उनका आदर भी करते हैं। उनका सबसे बड़ा उद्योग कपड़ा है। उन्हें उस कपड़ेके बहिष्कारसे ही हमारी शक्तिका ज्ञान हो सकता है। वे अपने अभिमानको पुष्ट करनेके लिए हिन्दुस्तानपर कब्जा नहीं किये हुए हैं। वे कोरे शस्त्रबलसे नहीं, बल्कि अपने कौशलसे हम लोगोंको अपने वशमें रखते हैं। वे हिन्दुस्तान पर व्यापारके लिए ही राज्य करते हैं। जब उनका व्यापार हमारी स्वतन्त्र इच्छा पर ही निर्भर होगा तब उनका राज्य भी वैसे ही हमारी इच्छापर निर्भर होगा। इस समय तो वे अपना व्यापार और राज्य, दोनों हमारी इच्छाके विरुद्ध चलाते