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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाकर ग्रामवासियोंको उनकी शिक्षा दे सकेंगे। इसी प्रकार जब हम चरखेका शास्त्र अच्छी तरह सीख लेंगे और नित्य चरखा चलायेंगे तभी हम ग्रामवासियोंको चरखा चलाना सिखा सकेंगे और उसमें उनकी जो अश्रद्धा है उसे अपने व्यवहारसे दूर कर सकेंगे और यदि हम लोग इन चरखोंसे तैयार होनेवाली खादीका उपयोग न करेंगे तो चरखा न चल सकेगा, यह तो ऐसी बात है जिसे सभी आसानीसे समझ सकते हैं। इसलिए मैं शहरमें रहनेवालोंसे तो यज्ञार्थ चरखा चलानेकी ही प्रार्थना करता हूँ। गाँवोंमें रहनेवाले आजीविकाके लिए चरखा चलायेंगे। ऐसी सरल और सीधी बातकी टीका कैसे की जा सकती है? जो चरखेके रहस्यको समझता है उसके लिए तो टीका करनेका कोई कारण ही नहीं रहता।

(३) मैं चरखेको अपने लिए मोक्षका द्वार मानता हूँ। दूसरोंके लिए तो मैं इतना ही कहता हूँ कि वह हिन्दुस्तानकी आर्थिक स्थितिको सुधारने और स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए प्रचंड शस्त्र है। जो ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहता है उसको मैं चरखा चलानेके लिए कहता हूँ, यह बात तनिक भी हास्यास्पद नहीं है। बल्कि मेरे निकट एक अनुभव सिद्ध बात है। जिसे विकार-मात्रका त्याग करना है उसे शान्तिकी आवश्यकता है। उसका क्षोभ दूर होना चाहिए। चरखेकी प्रवृत्ति एक ऐसी ठंडी और शांत प्रवृत्ति है कि श्रद्धाभावसे चरखा चलानेवालोंके विकार शान्त होते देखे गये हैं। मैं चरखेपर बैठकर अपने क्रोधको शान्त कर सका हूँ और मैं दूसरे ऐसे अनेक ब्रह्मचारियोंके ऐसे ही अनुभव भी प्रस्तुत कर सकता हूँ। ऐसे अनुभव बतानेवालोंको मूर्ख मानकर उनकी हँसी उड़ाना आसान तो है, परन्तु है बड़ा महंगा, क्योंकि हँसी उड़ानेवाला विकार-वश होकर अपने विकारोंको दबाकर वीर्यवान बननेका एक सुन्दर साधन खो बैठता है। मैं इसे पढ़नेवाले प्रत्येक युवक और युवतीको, यदि वे चरखेके विरुद्ध भ्रममें न पड़ गये हों तो, उसकी आजमाइश करनेकी सलाह देता हूँ। वे यह देखेंगे कि चरखेपर बैठनेके बाद कुछ ही समयमें उनके विकार कम होने लगे हैं। मेरे कहनेका आशय यह नहीं कि कातनेसे शान्त हुए विकार, काना बन्द कर देनेके बाद भी २४ घंटेतक वैसे ही शान्त बने रहेंगे। विकारोंका उद्वेग तो वायुसे भी अधिक प्रबल होता है। उसे शान्त करनेके लिए धैर्यका होना आवश्यक है और इस धैर्यका विकास करनेके लिए चरखा एक प्रबल साधन है। कदाचित् कोई यह कहे कि यदि चरखेका यही उपयोग है तो मैं उसके बजाय उससे भी अधिक काव्यमय माला फेरनेकी बात क्यों नहीं कहता? मेरा उत्तर यह है कि चरखेमें दूसरी भी शक्तियाँ हैं। मैंने हिमालयकी गुफामें रहनेवाले और वहाँ उगनेवाले पेड़-पौधोंके कन्दमूल फलोंपर ही निर्वाह करनेवाले किसी अवधूतके सामने चरखा नहीं रखा है। परन्तु मैंने तो अपने जैसे असंख्य प्राकृत मनुष्योंके सामने, जो संसारमें रहते हैं, देशकी सेवा करना चाहते हैं और देश सेवा करते हुए ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहते हैं, यह चरखा प्रस्तुत किया है।

और नजरबन्द निरपराध बंगालियोंको छुड़ानेके लिए मैं जो चरखेको प्रस्तुत कर रहा हूँ उसे हँसीमें उड़ा देनेका तो यह मतलब हो सकता है कि हम अपनी शक्तिसे