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अज्ञानका जाला

(६) शायद आप यह भी कहते मालूम होते हैं कि चरखेके उद्योगके विकासके लिए दूसरे उद्योगोंको भी छोड़ देना चाहिए।

जितनी आपत्तियाँ मैं उनमें से चुन सकता था उतनी चुनकर मैंने यहाँ अपनी भाषामें दे दी हैं और मेरा खयाल है मैंने ऐसा करनेमें लेखकके प्रति कोई अन्याय नहीं किया। यदि अन्याय किया है तो उसकी कटुता निकाल देनेका अथवा कम करनेका ही अन्याय किया है। चिढ़े हुए देशभक्तोंकों बड़े माने जानेवाले मनुष्योंके प्रति कठोर वचन कहनेका अधिकार है। क्योंकि एक तरफ देशकी गरीबीको देखकर और दूसरी तरफ उस स्थितिको सुधारनेमें अपनेको लाचार पाकर उन्हें जो क्रोध होता है उसे वे बड़े माने जानेवालोंके प्रति कठोर वचनोंका प्रयोग करके कुछ हदतक शान्त कर सकते हैं। मेरा धर्म उस क्रोधको विज्ञापित करना नहीं, उस क्रोधसे उत्पन्न हुए भ्रमको, जिस किसी उपायसे वह दूर किया जा सके दूर कर देना ही हो सकता है। इसीलिए मैंने भाषाको यथासम्भव नरम बनानेका प्रयत्न किया है।

अब हम उनके इन छः मुद्दोंकी परीक्षा करें।

(१) मैंने चरखेको कामधेनु मनवानेका कोई प्रयत्न नहीं किया है; परन्तु मैंने उसे अपनी कामधेनु अवश्य माना है। आज हिन्दुस्तानमें करोड़ों हिन्दू वैसा कर रहे हैं। वे थोड़ी-सी मिट्टी लेकर, उसकी पिंडी बनाकर, उसमें ईश्वरका आरोपण करके उसको अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं और उसे अपनी कामधेनु बनाते हैं। परन्तु उस मिट्टीकी पिण्डीको पूजनेकी सलाह वे अपने पड़ोसियोंको भी नहीं देते। अपनी पूजा-विधि खत्म हो जानेपर उस परमात्मामय पिण्डीको वे नदीके प्रवाहमें विसर्जित कर देते हैं। मैं उन करोड़ोंमें से एक हूँ, इसलिए यदि मैं चरखेको अपनी कामधेनु बनाऊँ तो उससे पढ़े-लिखे लोगोंके मनमें अरुचि क्यों उत्पन्न होनी चाहिए? क्या उनसे मैं सामान्य सहिष्णुताकी भी आशा नहीं रख सकता? परन्तु सभी पढ़े-लिखे लोगोंने अभी मेरा त्याग नहीं किया है। कुछ लोगोंको उससे अरुचि हुई है, इसलिए सभीको हुई है यह विश्वास करना या दूसरोंको करानेका प्रयत्न करना अनुचित है। परन्तु थोड़ी देरके लिए मान भी लें कि सभी पढ़े-लिखे लोगोंने मेरा त्याग कर दिया है तो भी यदि मेरी श्रद्धा अटल होगी तो वह ऐसे समयमें और भी अधिक तेजस्वी और ज्वलन्त बन जायेगी। सन् १९०८ में 'किलडोनन केसल' जहाजमें हिन्द-स्वराज्य लिखते समय जब मैंने चरखेके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की थी तब तो मैं अकेला ही था। जिस परमात्माने उस समय मेरी कलमको चरखेकी बात सुझाई वह क्या उस श्रद्धाकी परीक्षाके समय मेरा साथ छोड़ देगा?

(२) चरखा छोटे-छोटे गाँवोंमें चलवानेके लिए ही है। आज वह वहीं चलाया भी जा रहा है। मैं जो उसे उत्तेजन देनेकी भिक्षा माँग रहा हूँ वह गाँवोंमें उसका पुनरुद्धार करनेके उद्देश्यसे ही माँग रहा हूँ और शिक्षित वर्गसे प्रार्थना करनेकी आवश्यकता भी मुझे इसीलिए पड़ती है। गाँवोंके लोगोंको मलेरिया इत्यादि रोगोंसे अपना बचाव करनेका कोई ज्ञान नहीं है। यदि हम उन्हें वह ज्ञान देना चाहें तो हम लोगोंको——शिक्षित वर्ग और मध्यमवर्गके बहुसंख्यक लोगोंको——उन रोगोंको नष्ट करनेके नियमोंको जानना और उनका पालन करना होगा। हम ही उसके बाद गाँवोंमें