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५३६. पत्र: मीराबहनको

देवलाली
१५ मई, १९२६

चि॰ मीरा,

मैंने आज एक पोस्टकार्ड डाक निकलनेसे पहले लिखा है। इस पत्रको मैं बम्बईमें डाकमें डलवाऊँगा, जहाँके लिए मैं अभी रवाना हो रहा हूँ।

तुम्हारा हिन्दी पत्र बहुत अच्छा लिखा हुआ है। "हस्पतालसे छोड़ेगा" नहीं, बल्कि "छूटेगा" होना चाहिए। "छोड़ेगा" सकर्मक क्रिया है और इसलिए उसके पहले 'से' विभक्ति नहीं लगती, मगर "छूटेगा" अकर्मक है, इसलिए उसके पहले 'से' लगता है।

मैं जानता हूँ तुम्हें वियोगका दुःख है। तुम उससे छुटकारा पा लोगी, क्योंकि उससे छुटकारा पाना ही है। यह थोड़े दिनका वियोग उस लम्बे वियोगकी तैयारी हैं, जिसे मृत्यु लाती है। असलमें वियोग ऊपरी ही है। मृत्यु हमें एक-दूसरेके और भी निकट लाती है। क्या शरीर बाधा नहीं है——यद्यपि वह परिचयका साधन भी है?

देवदास बिलकुल ठीक और प्रसन्न था। मथुरादास भी पहलेकी अपेक्षा बेहतर है। मुझे उसके लिए पंचगनीमें ठहरनेकी जगह तलाश करनी है।

सस्नेह,

तुम्हारा बापू

[पुनश्च:]

'आत्मकथा' का अध्याय इस पत्रके साथ ही डाकमें डाला जायेगा। तुम जैसे चाहो उसे दुरुस्त कर देना और स्वामीको दे देना। टाइपकी हुई प्रतिमें जो सुधार हैं, मेरे किये हुए हैं। मूल प्रति भी तुम्हें भेजनेकी कोशिश करूँगा।

बापू

अंग्रेजी पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५१८५) से।
सौजन्य: मीराबहन