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५३२. पत्र: जयसुखलालको

सबरमती आश्रम
बृहस्पतिवार, वैशाख सुदी २ [१३ मई, १९२६][१]

चि॰ जयसुखलाल,

इस बारके 'नवजीवन' में कार्यालयपर लेख[२]लिखा है; उसे पढ़ जाना और उसमें कुछ रह गया हो तो मुझे बताना। तुम्हारे पत्रोंमें आजकल मैं कुछ उद्वेग, कुछ अधीरता और कुछ निराशा-सी देखता हूँ। यह भी देखता हूँ कि भाई लक्ष्मी-दासकी टीका तुम्हें पसन्द नहीं आई। लेकिन इसमें न तो उद्वेगका कोई कारण है और न निराशाका। टीकाके बारेमें असहिष्णुताकी भावना तो होनी ही नहीं चाहिए। टीकाकार स्वयं जिस वस्तुकी टीका करता है उसे वह खुद अच्छी तरहसे चलाकर दिखा दे, ऐसा हमेशा नहीं होता। तुम उसमें से जितना स्वीकार कर सको उतना स्वीकार करना तुम्हारा धर्म है। जो न कर सको वह तुम्हें लक्ष्मीदासको बताना चाहिए और उनसे उसकी चर्चा करनी चाहिए। ऐसा हो तो उसमें से तुम कुछ सीखोगे। आजकल जहाँ-तहाँ जो खादी बिक रही है वह केवल भावनाके कारण ही बिक रही है। इस भावनाका पोषण करना तुम्हारा काम है। तुम वहाँ बैठे तपस्या कर सको तो काम बढ़ा सकते हो। सूत और खादीकी किस्म सुधारकर दिखा सको तभी इस भावनाका पोषण किया जा सकता है। जिन लोगोंने कपासका संग्रह किया है उनकी खादीकी जाँच करनेके लिए तुमने यहाँसे एक व्यक्तिकी माँग की है। ऐसा व्यक्ति मैं कहाँसे दूँ? तुम्हें यहींसे समझाया था कि जब खादी तैयार हो तब उसमें से तुम्हें तीन-चार इंच चौड़ा टुकड़ा काटकर भेजना चाहिए, जिससे हरएक थानकी परीक्षा हो सके। थानपर और टुकड़ेपर नम्बर होना चाहिए जिससे जिस नम्बरका टुकड़ा जाँचमें असफल पाया जाये उस नम्बरका थान तुरन्त पहचाना जा सके। इसमें कुछ समय लगता है लेकिन मैं इसे अनिवार्य मानता हूँ। लोगोंको यदि अपने पैसोंकी कीमत मिले तो वे खादीमें विश्वास कैसे खो सकते हैं? यदि तुम यह नहीं कर सकते तो तुमसे इतना ही कहता हूँ कि जिस खादीके बारेमें तुम्हें भरोसा हो उसके पैसे चुका दो। यदि एक ही स्थानपर पैसे चुकाये जाने हों तो ऐसा करनेमें दिक्कत नहीं होती। जब अलग-अलग कई स्थानोंपर पैसा चुकाना हो तब खादीकी परीक्षा एक ही स्थानपर होनी चाहिए; नहीं तो व्यवस्था टूट जाती है। अब वहाँकी स्थिति देखकर जो ठीक लगे सो करना। मैं आज महाबलेश्वर जानेके लिए रवाना हो रहा हूँ। २२ तारीख शनिवारको वापस यहाँ पहुँचनेकी उम्मीद रखता हूँ। सोमवारतक मेरी डाक मुझे

  1. गांधीजीकी महाबलेश्वर यात्रा और देवदासके अस्पतालमें होनेकी चर्चाके उल्लेखसे।
  2. देखिए "टिप्पणियाँ", १६-५-१९२६।