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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  देनेपर ही निर्भर करता है। लेकिन जिन्हें कृषिका थोड़ा भी ज्ञान है और जिनके पास खेतीकी कुछ जमीन है उन्हें श्री गेलेटीके उपायको आजमाकर उसके नतीजे प्रकाशित करने चाहिए। ऐसे लोगोंके लाभके लिए मैं श्री गेलेटी द्वारा भेजे पर्चेके कुछ प्रासंगिक अंश नीचे दे रहा हूँ।[१]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १३-५-१९२६

५२९. टिप्पणियाँ

राष्ट्रीय सप्ताहमें खादी

राष्ट्रीय सप्ताहके दौरान जो काम किया गया है, उसके कुछ विवरण अखिल भारतीय चरखा संघको मिले हैं। उनके अनुसार बनारसके बाबू शिवप्रसाद गुप्त खादीकी बिक्रीके लिए स्वयंसेवकोंको संगठित करके वहाँ लगभग २,००० रुपयेकी खादी बेची। इलाहाबादमें १,२०० रुपयेसे अधिककी बिक्री हुई, गाजीपुरमें १६० रुपयेसे ज्यादाकी और बांदामें लगभग १००० रुपयेकी खादी बिकी। परिणामतः संयुक्त प्रान्तमें जितनी खादी तैयार की गई थी, सब खप गई। पंजाबमें लोगोंने बड़ा उत्साह दिखाया। ११,००० रु॰ की खादी बेची गई। बहुत-से नेताओंने खादी बेचनेके लिए फेरियाँ लगाई। तमिलनाडके सभी भण्डारोंमें कुल, १८,६२२ रु॰ ११ आने ११ पाईकी खादी बिकी।

अच्छा हो, भारतके दूसरे सभी खादी केन्द्र भी अपने-अपने विवरण भेजें। इन आँकड़ोंमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है, लेकिन इनसे प्रकट होता है कि अगर अग्रगण्य पुरुष और स्त्रियाँ अपने-अपने केन्द्रोंमें लगकर काम करें तो जितनी भी खादी तैयार होती है वह सब बड़ी आसानीसे जिस प्रान्तमें तैयार की जाती है उसीमें खप जाये और फिर जब ग्राहकोंका अभाव नहीं होगा तो अच्छी खादीके उत्पादनपर कोई रोक लगानेकी जरूरत नहीं रह जायेगी। खादीके उत्पादनके लिए कौशल और सतत प्रयत्नकी आवश्यकता है। बिक्रीके लिए ऐसे लोगोंकी जरूरत है, जिनकी अपने-अपने क्षेत्रोंमें विशेष प्रतिष्ठा हो और जिनमें उत्साहके साथ काम करनेकी क्षमता हो। इसलिए अच्छी बिक्रीके लिए यह आवश्यक है कि गण्यमान्य स्वयंसेवक वर्षके कुछ निर्धारित महीनोंमें अपने समयका एक हिस्सा इस काममें लगायें।

एस॰ एल॰ आर॰ को

अच्छा होता, अगर आपने बारीक कागजके चार सफोंके दोनों ओर लिखनेके बजाय एक ही ओर लिखा होता। इससे आपकी लिखावट आसानीसे पढ़ी जा सकती। आप अपनी बात संक्षिप्त रूपमें इसके चौथाई स्थानमें भी लिख सकते थे।

मैं तो आपसे यह कहूँगा कि किसीके कुकृत्यको याद करनेका मतलब, जिसने वह कुकृत्य किया, उसके प्रति घृणा करना नहीं होता। मेरे बहुत-से मित्रों और

  1. यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।