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५२८. पशु-समस्या

कुछ महीने पूर्व गंजामके कलक्टर श्री ए॰ गेलेटीने मुझे एक पर्चा भेजा था। उसमें 'स्टेट्समैन' में प्रकाशित उनका एक लेख पुनर्मुद्रित किया गया था। लेखमें उन्होंने अपने इटलीके अनुभवोंके आधारपर भारतकी पशु-समस्याके सम्बन्धमें अपना मत प्रकाशित करते हुए कहा था कि (१) भारतकी कृषि अच्छे पशुओंपर निर्भर करती है; (२) भारतमें पशुओंकी ठीक देख-भाल नहीं होती, इसलिए यहाँ उनकी अवस्था अन्य देशोंकी अपेक्षा बहुत खराब है; (३) उनकी अवस्थामें सुधार करनेका एकमात्र उपाय यही है कि भारत सिर्फ सामूहिक चरागाहोंपर निर्भर करनेके बजाय चारेकी फसल पैदा करे; और (४) फसल-परिवर्तनकी पद्धतिसे अन्नके साथ-साथ चारेकी फसल पैदा की जा सकती है और ऐसा करनेसे अन्नके उत्पादनमें भी कोई कमी नहीं आयेगी।

इटली की परिस्थितियोंको भारतकी परिस्थितियोंपर लागू करना मुझे असंगत लगा, क्योंकि हमारे यहाँके खेत बहुत छोटे-छोटे हैं——यहाँतक कि सिर्फ दो-दो एकड़के या कहीं-कहीं इससे भी कम रकबेके होते हैं। मैंने अपनी शंका उनतक पहुँचाई। श्री गेलेटीने उसका उत्तर[१] देते हुए निम्न प्रकार लिखा है:

भारतके करोड़ों पशुओंकी यह मूक प्रार्थना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, बल्कि ऐसे हर भारतीयके लिए है जो सोच-विचार सकता है और विशेषकर ऐसे हर हिन्दूके लिए है, जिसे गायोंका विशेष रक्षक होनेका अभिमान है। आशा है, श्रीयुत वा॰ गो॰ देसाई भारतके पशुओंकी हत्याके सम्बन्धमें बहुत ही मनोयोगपूर्वक जो लेख लिखते रहे हैं, उन्हें पाठकगण ध्यानसे पढ़ते रहे होंगे। उनमें भारतके नगरोंमें पशुओंकी अवस्था कैसी है, इसका बड़ा सजीव चित्रण हुआ है। श्री गेलेटीने फार्मोपर रखे जानेवाले पशुओंका चित्रण किया है और विस्तारपूर्वक बताया है कि उनकी दशा कैसे सुधारी जा सकती है। पशुओंकी नस्ल सुधारने और उनके जीवनकी रक्षा करनेके प्रश्नका सम्बन्ध जितना अधिक धर्मसे है उतना ही आर्थिक जीवनसे भी है। मैं नहीं जानता कि श्री गेलेटीका सुझाया उपाय भारतकी परिस्थितियोंपर कहाँतक लागू हो सकता है। इसपर आधिकारिक मत तो वहीं लोग दे सकते हैं जो खुद खेतीबाड़ी करते हैं। लेकिन एक कठिनाई स्पष्ट है। करोड़ों किसान इतने जागरूक नहीं हैं कि वे नये और क्रान्तिकारी तरीकोंको अपना सकें। अगर हम श्री गेलेटी द्वारा सुझाये उपायोंको सही मान लें तो भी इसका प्रयोग भारतके विशाल जनसमुदायको कृषिकी शिक्षा

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। श्री गेलेटीने यह बतानेके बाद कि किस प्रकार उनके पिताके फार्मोसे ४ एकड़के सबसे छोटे फार्मका जोतदार भी फसल-परिवर्तन पद्धतिके अनुसार जरूरतके लायक काफी अन्न, चारा और फल पैदा कर लेता था, गांधीजीसे कहा था कि दस करोड़ पशु सहायताके लिए आपसे मूक प्रार्थना कर रहे हैं।