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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  फिर, ज्यादा बुरा क्या है——मृत पशुओंका मांस खाना या मनमें गन्दे विचार लाना? हम प्रतिदिन अपने मनमें लाखों गन्दे विचार लाते हैं, उन्हें अपने मनमें स्थान देते हैं और उनका पोषण करते हैं। अगर किसीका त्याग करना हो तो हम इन्हींका त्याग करें, क्योंकि ये असली अस्पृश्य हैं, जिनसे घृणा करनी चाहिए, जिन्हें मनसे दूर निकाल फेंकना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि अस्पृश्य भाइयोंको प्रेमसे गले लगाकर, हमने अतीतमें उनके साथ जो अन्याय किया है, उसके लिए प्रायश्चित्त करें। पत्र-लेखकको अस्पृश्योंकी सेवा करनेपर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन अगर उन्हें देखना भी हमें नागवार गुजरेगा और ऐसा मानेंगे कि उनके देखनेसे ही हम अपवित्र हो जाते हैं तो फिर हम उनकी सेवा कैसे कर पायेंगे?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १३-५-१९२६

५२७. मार्चके और आँकड़े

कुछ केन्द्रोंने मार्च महीनेमें हुए खादीके उत्पादन और बिक्रीके आँकड़े[१] भेजे हैं, वे नीचे दिये जा रहे हैं। मैं आशा करता हूँ, जो केन्द्र अभीतक नियमित रूपसे आँकड़े नहीं भेजते रहे हैं, वे भेजना शुरू कर देंगे।

आँकड़े हमेशाकी तरह अपूर्ण हैं। बंगालके आँकड़ोंमें खादी प्रतिष्ठान, अभय आश्रम और आरामबाग खादी केन्द्रके आँकड़े भी शामिल हैं।

तुलनात्मक आँकड़े

अभय आश्रमने अपनी देखरेखमें होनेवाले खादीके उत्पादन और बिक्रीके तुलनात्मक आँकड़े[२]भेजे हैं, जो निम्न प्रकार हैं:

इन आँकड़ोंसे प्रकट होता है कि अभय आश्रममें १९२५-२६ की हर तिमाहीमें १९२३-२४ की उसी तिमाहीकी तुलनामें खादीका २५ गुना ज्यादा उत्पादन हुआ। मैं देशके सभी मुख्य खादी संस्थानोंसे कहूँगा कि वे भी इसी तरहके तुलनात्मक आँकड़े भेजनेकी कृपा करें। अगर वे अभय आश्रमकी जैसी प्रगति दिखाते हैं तो जो लोग यह कहते हैं कि खादी पिछले पाँच वर्षोंमें प्रगति करनेके बजाय उत्तरोत्तर पिछड़ती ही गई है, उनको ठीक जवाब मिल जायेगा। अभय आश्रमके ऐसे प्रगति-सूचक आँकड़ोंसे खादी कार्यकर्त्ताओंको और अधिक प्रयत्न करनेके लिए प्रोत्साहन मिलना चाहिए। कारण, उनके सामने लाखों रुपयेकी नहीं, बल्कि करोड़ों रुपयेकी खादी तैयार करनेका काम है।

[अंग्रेजीसे?]
यंग इंडिया, १३-५-१९२६
  1. आँकड़े यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।
  2. आँकड़े यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं।