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५१९. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

साबरमती आश्रम
१२ मई, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

मैं चाहता हूँ, आप कलकत्ताके दंगेके विषयमें अपनी कलमसे सब-कुछ सही-सही लिख भेजें। पता नहीं छोटालालने आपको मेरा पत्र दिया या नहीं और वह अपना काम कैसा कर रहा है। खैर, यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि आपने अपना आहार बदल दिया है और अब आप अधिक पौष्टिक चीजें खा रहे हैं। कृपया इसे जारी रखें। अगर आप अपने शरीरको दुर्बल बना लेते हैं या बीमार हो जाते हैं तो यह अपराध होगा। पौष्टिक आहारपर कुछ रुपये खर्च करनेमें कोई हर्ज नहीं है। यह खर्च उचित ही होगा। मैं जानता हूँ कि आप जिह्वा सुखके लिए भोजन करनेवाले आदमी नहीं हैं, लेकिन अगर जीनेके लिए किसी चीजकी जरूरत हो तो उसकी व्यवस्था करनी ही चाहिए।

हेमप्रभा देवीने मुझे एक बहुत छोटा-सा पत्र लिखा है। उससे तो मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। उनसे कह दीजिए कि इससे काम नहीं चलेगा। उन्हें अपने मानसिक ऊहापोह, आशाओं और आशंकाओं, पसन्द और नापसन्दगीके बारेमें विस्तारसे लिखना चाहिए।

आपका,
बापू

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ १९५५०) की माइक्रोफिल्मसे।

५२०. पत्र: लूसियन जैक्विनको

१२ मई, [१९२६]

मेरी सलाह है कि मेरे लेखोंको ध्यानसे पढ़ लेनेके बाद ही कोई कदम उठाइए।

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२४१६) की फोटो-नकलसे।