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५१७. पत्र: महादेव देसाईको

आश्रम
बुधवार [१२ मई, १९२६][१]

चि॰ महादेव,

तुम्हारा पत्र मिला। जमनालालजीका तार भी मिला। अभी-अभी सर चुनीलालका तार आया है। गवर्नर मंगलवारको मिलेंगे। इसलिए अभी तार दे रहा हूँ कि मैं कल रवाना होऊँगा। पहली ट्रेनसे निकलूँगा। अन्य कार्यक्रम वहाँ आकर तय करेंगे। मेरी इच्छा तो यह है कि शुक्रवारकी रातको ही देवलाली हो आऊँ। और रविवारको सवेरे वापस बम्बई पहुँच जाऊँ। रविवार और सोमवार बम्बईमें बिताकर 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' को पूरा किया जाये और मौन भी रखा जाये। सोमवारकी रातको मौन छोड़कर पूना जाऊँ और पूनासे तुरन्त महाबलेश्वरकी गाड़ीमें बैठ जाऊँ। नहाना-धोना, खाना-पीना महाबलेश्वरमें ही किया जाये। ऐसा करनेसे कमसे-कम परिश्रम होगा। लेकिन इसमें जो फेर-बदल करना हो सो सब सोच रखना और जब मैं वहाँ आऊँगा तब कर लेंगे। मंगल-बुध महाबलेश्वरमें रहकर गुरुवारको सबेरे वहाँसे निकल पड़ेंगे। रास्तेमें सिंहगढ़ जायें और सिंहगढ़से दिन ढले चल पड़ें और पूनासे ट्रेन पकड़ लें, सवेरे बम्बई पहुँचें और शनिवारको सुबह अहमदाबाद। इसमें कोई दिन बच सकता है ऐसा मैं नहीं देखता। महाबलेश्वरको दो दिन देना ही चाहिए। सोमवार महाबलेश्वरमें बितानेका विचार करें तो हो सकता है, लेकिन इससे तो रविवार और सोमवार देवदासके पास बिताना ज्यादा ही इष्ट लगता है अथवा हमें एक दिन देना हो तो मथुरादासको दे सकते हैं। सोमवार तो बम्बईमें ही होना चाहिए।

अब तुम्हें लिखनेको कुछ और नहीं रहता। एक बात तो भूल ही गया। कुमीके अत्यन्त आग्रहके सामने मुझे झुकना पड़ा है और कान्ति, रसिक तथा मीनु कल राजकोट जा रहे हैं। वह शुक्रवारको उन्हें वापस भेज देगी, यह शर्त है। मैंने जब इन बच्चोंसे पूछा तब मैंने देखा कि उनकी जानेकी इच्छा है इसलिए उन्हें भेजना ही मुझे ठीक लगा।

रमणीकलालने आजसे दस दिनका उपवास आरम्भ किया है। उसका कारण मात्र यह है कि अनेक वर्षोसे उन्हें उपवास करनेकी तीव्र इच्छा रही है। अतएव अब भणसालीकी [अपने उपवासके] अन्तिम दिनोंमें एक साथी मिल गया है। भणसालीकी गाड़ी तो उत्तम ढंगसे चल रही है। आज १२ वाँ दिन है लेकिन उन्हें कुछ भी महसूस नहीं होता। चेहरेपर अभी उपवासका ऐसा असर नहीं है जो साफ-साफ

  1. पत्रमें गांधीजीकी यात्राके कार्यक्रमकी चर्चा तथा देवदासकी तबीयत सुधरनेकी बातके उल्लेखसे।