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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे विश्वास है कि रामनाथनके वेतनमें जो वृद्धि की जायेगी, उसे वह अ॰ भा॰ च॰ संघसे ही लेनेका आग्रह नहीं करेगा।

आपका,

श्रीयुत च॰ राजगोपालाचारी


गांधी आश्रम


तिरुचेनगोडु

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५४८) की फोटो-नकलसे।

५१६. पत्र: काका कालेलकरको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, ११ मई, १९२६

भाईश्री ५ काका,

बकरी माताके बारेमें तुम्हारा दूसरा पत्र मिला है। अब तो शायद पुस्तक भेजनेके बजाय यदि मैं सिंहगढ़ आया तो इस कामको भाषणसे ही निपटा दूँगा। यहाँसे गुरुवारको निकलकर शुक्रवारको महाबलेश्वर पहुँचनेकी जो बात थी सो तो टल गई, क्योंकि गवर्नरके लिए आगामी सप्ताह अधिक सुविधाजनक है। कब रवाना हो सकूँगा, यह तो बादमें ही कहा जा सकेगा। बाकी, देवदासने ऑपरेशन कराया है इसलिए उससे भी अवश्य ही मिलना है। बम्बई रास्तेमें पड़ता है इसलिए देवदाससे मिलनेकी खातिर भी मैं कदाचित् जल्दी निकलूँ। किन्तु यह बात देवदासकी इच्छापर निर्भर करेगी।

अनुवाद-योग्य पुस्तकोंके बारेमें तुमने जो लिखा है उससे मैं अक्षरशः सहमत हूँ। मैंने तो यह जमनादास स्मारक मालाके खयालसे पूछा था। तुम्हारी तैयार की हुई सूची न तो शंकरलालके पास है और न स्वामीके। इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि भाषान्तर अच्छे व्यक्तियोंसे ही कराना चाहिए और पुस्तकें भी ऐसी होनी चाहिए जो लोगोंके लिए तुरन्त उपयोगी सिद्ध हों और जो समझमें आ सकें। तुमने तो अपने पत्रमें पुस्तकोंका ढेर लगा दिया है। लेकिन इस मालाके लिए अभी फिलहाल कौनसी पुस्तकें पसन्द की जायें, इस बारेमें विचार करना बाकी है। इसलिए यदि इसपर विचार कर लो तो अच्छा है।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३१) की फोटो-नकलसे।