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५१५. पत्र: च॰ राजगोपालाचारीको

साबरमती आश्रम
११ मई, १९२६

आपके दोनों पत्र मिले। इस पत्रके साथ केलप्पनका पत्र भेज रहा हूँ। आपने जो कुछ किया है, बिलकुल ठीक किया है। उन्हें अपने कामका ब्यौरा आपको समय-समयपर अवश्य देना चाहिए।

मैं सन्तानम्को पत्र[१] लिख रहा हूँ, जिसकी प्रति आपको साथमें भेज रहा हूँ। रामनाथनके बारेमेंमें शंकरलालसे बात करूँगा। मुझे किसी कठिनाईकी आशंका नहीं है।

फिनलैंड जानेके बारेमें पर्ची उठानेकी विधिसे कुछ तय नहीं कर सकता। और यदि करूँ भी तो उसके लिए अब बहुत देर हो चुकी है। तथापि आपकी जैसी आशंका मुझे भी है। मैंने अपनी शर्ते बता दी हैं और यदि उनके बावजूद वे मुझे बुलाना चाहते हैं तब तो जानेमें कुछ सार है, अन्यथा नहीं।

भले ही यहाँसे आपको किसीको अस्थायी तौरपर बुलाना पड़े, लेकिन आप जूनमें तो दौरेके लिए तैयार रहेंगे ही। रहेंगे न? छोटालाल आपके लिए कैसा रहेगा? वह वहाँ ज्यादा दिनोंतक नहीं रह सकेगा। लेकिन यदि वह आपके लिए कुछ सहायक हो सकता है और आपको कुछ राहत दे सकता है तो उसको दो-तीन महीनेके लिए वहाँ खुशी-खुशीसे रहनेको राजी किया जा सकता है।

मैंने अब शंकरलालसे बात कर ली है। उनका कहना है कि यदि रामनाथनका वेतन बढ़ाकर १५० रुपये कर दिया जाता है तो अन्य लोग भी अपना वेतन बढ़ानेके लिए अवश्य जोर डालेंगे। चरखा संघ-जैसी सार्वजनिक और व्यापक संस्थाके लिए स्थायी नियमोंसे अलग हटना जोखिमका काम होगा। साथ ही मैं आपकी या यों कहिए कि रामनाथनकी कठिनाई भी समझता हूँ। इसलिए मेरी सलाह है कि जबतक अत्यावश्यक हो तबतक आप रामनाथनको सेवासंघसे पैसे देते रहें। उसके लिए शायद जमनालालजीसे सलाह करनी होगी, जो आप कर लें; अथवा यदि आप चाहें तो मैं ही कर लूँ। यदि इसे कुछ दिनोंके लिए स्थगित किया जा सकता है तो अपना दौरा प्रारम्भ करनेसे पहले आप यहाँ आ जायें और शंकरलालसे इसपर चर्चा कर लेन

  1. देखिए "पत्र: के॰ सन्तानम्को, ११-५-१९२६।
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