पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/५००

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



५१४. पत्र: सी॰ वी॰ कृष्णको

साबरमती आश्रम
११ मई, १९२६

प्रिय कृष्ण,

तुम्हारा पत्र मिला। रुस्तमजी भवनके लिए भी सुझाव अ॰ भा॰ च॰ संघकी ओरसे आना चाहिए।

यही तुम्हें महीनेमें पर्याप्त छाछ मिल जाता है तो तुम्हारी खुराक अच्छी है। यह सब तुम्हें मुफ्तमें कौन देता है? क्या आंध्र देशमें छाछ मुफ्त देनेकी प्रथा है? क्या तुम्हें उसे माँगना पड़ता है? अथवा माँगे बिना ही तुम्हें भेज दिया जाता है? विस्तारसे लिखो कि एक रुपयेमें हर महीने तुमको क्या और कितने फल मिलते हैं। तुम्हारी खुराककी तालिका शास्त्रीय रीतिसे तैयार की जानी चाहिए; और शास्त्रीय तालिका वह है, जिसमें जो वस्तुएँ तुम खाते हो उनके वजन और मूल्य सब दिये जायें। तुम हमेशा, यानी चावलका दाम दुगुना हो जानेपर भी, जैसा कि अकसर हो जाता है, सवा रुपयेका ही चावल नहीं खाते होगे। चावल आदि मुख्य खाद्य तो चाहे उनकी कीमतें कुछ भी हों, तुम्हें उतनी ही मात्रामें लेने पड़ेंगे। इसलिए मैं चाहूँगा कि तुम मुझे, मुफ्त मिल जानेवाली वस्तुओं समेत, जो-कुछ लेते हो, सबकी सही मात्रा तथा कीमत लिख भेजो।

मैं कार्यकर्त्ताओंका मार्ग-दर्शन करनेके लिए विभिन्न संस्थाओंमें दी जानेवाली खुराकका परिमाप (स्केल ऑफ डाएट) प्रकाशित करना चाहता हूँ। सब चीजें पूरी-पूरी लिखो, इत्यादि मत लगाओ। जैसे "नमक आदि" के बजाय तुम यह लिखो कि तुम कितना नमक, हल्दी, अदरक या दूसरे मसाले खाते हो।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९५४७) की माइक्रोफिल्मसे।