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५०९. पत्र: जमनालाल बजाजको

साबरमती आश्रम
रविवार, ९ मई, १९२६

चि॰ जमनालाल,

तुम्हारा पत्र मिला। आज शामतक तुम्हारा तार आनेकी आशा रखूँगा। मुझे कोई चिन्ता नहीं है। बाको कहना कि रामीकी लड़कीको बिलकुल आराम है। बाका सन्देश मुझे मिला था। मणिबहन और छोटी काशी रसोई करती है। आज रामीकी मौसी कुमीबहन आई है; उसे लेनेके लिए कान्ति और मनु स्टेशन गए थे। बा यहाँकी चिन्ता न करें।

रामेश्वरप्रसाद, उसकी माताजी आदि कल यहाँ आये। आज वहाँके लिए रवाना हो रहे हैं। महाबलेश्वर जानेके बारेमें मेरा पत्र तुम्हें मिल गया होगा। मैं समझता हूँ कि महादेवको तो वहीं रुकना होगा। महादेवको कोई भी सामान वहाँ लाना हो तो तुम्हें बतला दे। ओढ़नेके लिए कुछ खास लेना होगा, ऐसा मैं मानता हूँ। ऐसा लगता है कि वहाँ तीन दिन रुकना होगा——शनि, रवि और सोम। मंगलवारको वहाँसे चलकर सिंहगढ़में काकासे मिलनेकी बात भी मनमें है और हो सके तो देवलाली भी हो आया जाये। ऐसा करनेसे शायद दो दिन और लग जायेंगे। मंगलवारको सुबह चलकर १०-११ बजे सिंहगढ़ पहुँच सकते हैं और सिंहगढ़से उसी दिन शामको उतरकर देवलाली जाना सम्भव हो सके तो जायें, यह भी मनमें आता है। लेकिन अगर महादेवको ऐसा लगे कि देवलाली जानेकी जरूरत नहीं है तो सोचता हूँ कि देवलाली जानेकी बात छोड़ दी जाये, क्योंकि अगर देवलाली एक-दो दिन न रहा जाये तो वहाँ जानेमें कुछ सार नहीं। अभी तो मथुरादासको इसके बारेमें कुछ नहीं लिख रहा हूँ। महादेवकी सलाहपर इसका निर्णय करनेका विचार किया है। पूनासे मोटरका बन्दोबस्त तुम कर लोगे न? ट्रेन सबेरे १०॥ बजे पूना जाती है। अगर ऐसा हो तो देवदासको देखकर १०॥ बजेकी ट्रेनमें बैठ जाना और उसी रात महाबलेश्वर पहुँच जाना ठीक होगा। पूनासे दो मोटरोंका इन्तजाम हो तो अच्छा रहेगा, ऐसा लगता है। ऑपरेशनके बारेमें अभी-अभी वल्लभभाईकी ओरसे टेलीफोन मिला। ईश्वरकी कृपा!

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २६८३) की फोटो-नकलसे।