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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  है। इसके अतिरिक्त अमेरिकामें भारतका सन्देश सुनानेकी बात थी और सुनानेके लिए सन्देश तो कुछ है नहीं, यहाँ तो केवल विद्यार्थियोंके साथ एक प्रकारका आध्यात्मिक सम्बन्ध स्थापित करनेकी बात है, सन्देश नहीं है। यह सब सोचकर मैं फिनलैंड जानेको ललचाया हूँ। इसके बावजूद मनमें शंका तो है ही। इसीलिए मैंने अपनी शर्ते बताकर मुझे ले जानेकी जिम्मेदारी के॰ टी॰ पॉलपर डाली है। उन्होंने भी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनेके बजाय मेरा पत्र जिनेवा भेज दिया है। इतना सब होनेपर भी यदि वे अपने निमन्त्रणको कायम रखते हैं तो जानेमें दैवी इच्छा है, ऐसा कहा जा सकता है न? मैं तो ऐसा ही मानूँगा।

उत्तमचन्दको यहाँ जो सुविधा है वह अन्यत्र नहीं हो सकती, ऐसा मेरा दृढ़ मत है और अब तो तलवलकरके इन्जेक्शन भी शुरू किये हैं। उसकी तबीयत तो अच्छी है ही।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९५३९) की फोटो-नकलसे।

५०३. नगरसेवा

अहमदाबाद शहरकी सफाईके सम्बन्धमें पिछले सात महीनोंसे लगातार जो उपाय किये गये हैं, डाक्टर हरिप्रसादने उनका वर्णन[१] किया है। मैं प्रत्येक नगर सेवकको उसे पढ़ जानेका सुझाव देता हूँ। जो नगर-सेवा करना नहीं जानता वह देश-सेवा भी नहीं कर सकता। सेवाका बदला सेवा ही है, ऐसा माननेवाले लोगोंकी मददसे सात महीनोंमें जो काम हो सका है उसे अहमदाबादकी नगरपालिका हजारों रुपये खर्च करके भी नहीं कर सकती थी। यह सफाई नगरपालिका और नागरिकोंके बीच सहयोगका एक नमूना है और यदि घनिक नगरवासियोंकी मदद न मिलेगी तो जो काम हुआ है वह सम्भवतः नष्ट हो जायेगा। अहमदाबादको सफाईमें आदर्श नगर बनानेके योग्य पर्याप्त वन आसानीसे मिल सकता है। डाक्टर हरिप्रसादने जो अनेक सुझाव दिये हैं धनिक वर्गकी सहायताके बिना उनपर अमल नहीं किया जा सकता। इस काममें लगाया हुआ पैसा, पैसा देनेवालोंको अच्छा लाभ दे सकता है, क्योंकि शहरमें काफी मैदान हों और उनमें वृक्ष हों, खण्डहर मकानोंका मलबा हटा दिया जाये और खराब पाखाने बन्द कर दिये जायें तो इससे नागरिकोंके स्वास्थ्यमें सुधार होगा और जमीनकी कीमतोंमें बढ़ती होगी और फिर इसपर जो रुपया खर्च होगा उसे नागरिक स्वयं अपनी देखरेखमें खर्च कर सकते हैं। इसलिए इस कार्यमें दिया गया दान नहीं बल्कि आर्थिक दूरदर्शिताका एक नमूना माना जायेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ९-५-१९२६
  1. हरिप्रसाद व्रजराय देसाईके ९-५-१९२५ के नवजीवनमें प्रकाशित 'नगरकी सफाई', शीर्षक लेखमें।